इंदौर ! प्रदेश में फसलों की बड़े पैमाने पर हुई तबाही के बाद भी किसानों को फसल बीमा का लाभ नहीं मिल सकेगा. बीते सालों में भी भारी नुकसान के बावजूद किसानों को फसल बीमा के नाम पर सिर्फ छला ही गया है. दरअसल इस योजना में ही इस तरह के पेंच है कि आसानी से किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पाता। कहीं मिलता भी है तो बहुत कम. देशबंधु ने इसकी तहकीकात की, तो चौंकाने वाली बातें सामने आई।
मार्च -अप्रैल की बेमौसम बारिश से पूरे प्रदेश में फसलें बर्बाद होने से किसान सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। हालात इतने बुरे हैं, कि प्रदेश में 3 लाख किसानों की करीब 2 लाख हेक्टेयर में लगी फसलें तबाह हो चुकी हैं। अब तक दर्जन भर से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं जबकि आधा दर्जन से ज्यादा किसानों की सदमे से मौत हो चुकी हैं। लाखों किसानों का खेती से मोहभंग होकर अपनी धरती से भरोसा टूटता जा रहा है। सबसे बड़ी विडम्बना है, कि किसानों के लिए राष्ट्रीय कृषि फसल बीमा योजना मजाक बन गई है। फसल बीमा के नाम पर किसानों से राशि तो जमा करवा ली जाती है, लेकिन उन्हें इसका लाभ नहीं मिलता।
यहाँ बीते साल अतिवृष्टि से सोयाबीन व अन्य फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था. यहाँ जो मुआवजा बीमा कंपनी ने दिया है, वह लागत का एक फीसद भी नहीं है। कई किसानों को एक बीघे की फसल का मुआवजा 10 से 15 रुपए के मान से दिया गया है, जबकि संबधित बैंकों द्वारा उनके खाते में जो बीमा राशि नामे लिखी गई है, वह दिए गए मुआवजे से अधिक है. नलखेड़ा क्षेत्र की 13 सहकारी साख समितियों में 12हजार 330 किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड के तहत ऋण दिया है. इसमें से 8हजार 308 किसानों के भूमि खातों पर खरीफ फसल 2013 का फसल बीमा करवाया था. इसकी प्रीमियम राशि के रूप में समितियों द्वारा 95 लाख रुपए से अधिक की राशि किसानों के खातों में नामे मांडकर संबंधित बीमा कंपनी को जमा की थी, लेकिन करोड़ों रुपए फसल बीमा में भरने पर भी नुकसान की भरपाई नहीं हो पाई है।
नलखेड़ा तहसील के बड़ागांव के किसान राजेन्द्र सिंह राजपूत ने बताया कि उसकी साढ़े 9 हेक्टे. की सोयाबीन फसल का बीमा केवल 700 रुपए स्वीकृत हुआ वहीं यहाँ के ही किशन सिंह राजपूत ने बताया कि 70 बीघा भूमि पर 900 रुपए फसल बीमा के मंजूर हुए। यशवंत शर्मा व मुकेश शर्मा ने बताया कि 25-25 बीघा भूमि पर नष्ट सोयाबीन फसल के लिए 800 रुपए मंजूर किए हैं, जो ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।
इसी तरह हरदा जिले में बीते साल किसानों ने सोयाबीन की फसल खराब होने पर फसल बीमा राशि नहीं मिलने के खिलाफ करीब दो सप्ताह तक धरना प्रदर्शन किया और सोमवती अमावस्या पर किसान दंडवत करते हुए पर्व स्नान के लिए नर्मदा नदी पहुंचे। उन्होंने शहर बंद भी कराया था। इसके बाद भी अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। हरदा जिले के टिमरनी के पन्नासिया गाँव में बीते साल किसानों ने बीमा नहीं मिलने पर सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए निकले कृषि रथ को अपने गांव में घुसने नहीं दिया था। उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसी सरकारी योजनाएं नहीं चाहिए जिनसे उन्हें कोई लाभ ही नहीं हो। उनके गांव के किसानों को सोयाबीन की फसल खराब होने के बाद भी फसल बीमा से केवल 10 फीसदी राशि ही मिल सकी।
उधर, सरकारी आंकड़े बताते हैं, कि 2012-13 से 14-15 तक मप्र सरकार ने किसानों को 3136 करोड़ की सहायता राशि दी। 2012 और 13 में प्राकृतिक आपदा प्रभावित 18 लाख 54 हजार 858 किसानों को 2579 करोड़ फसल बीमा राशि दी गई। इसी अवधि में 2 लाख 26 हजार प्रभावित किसानों के सहकारी बैंक लोन को अल्पावधि से मध्यावधि में तब्दील किया, जिस पर सरकार को बैंकों को 727 करोड़ का अनुदान देना पड़ा। पिछले साल करीब 29 लाख हेक्टेयर में रबी की फसलें प्रभावित हुई थीं। सरकार ने 1900 करोड़ रुपए की राहत खजाने से बांटी थी जबकि, केन्द्र सरकार से 5200 करोड़ का राहत पैकेज मांगा गया था। इसके ऐवज में सिर्फ 467 करोड़ रुपए ही मिले थे।
प्रदेश में फसल बीमा का लाभ कम ही किसान ले पाते हैं। मार्च में बारिश से हुए नुकसान प्रभावित 80 लाख किसानों में से केवल 32 लाख ने ही फसल बीमा कराया है। इसी तरह देश में भी केवल 19त्नयानी 3.2 करोड़ किसान ही फसल बीमे के दायरे में हैं. बाकी 81त्न किसानों में से 46त्न को इसका पता तो है, पर उनकी रुचि नहीं है. वहीं 24त्नमानते हैं, कि उन्हें यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। जबकि 11त्न प्रीमियम जमा नहीं करा सकने से इससे महरूम हैं। इसका बड़ा नुकसान यह है, कि आपदा आने पर किसानों के पास आत्महत्या के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता है।
विदिशा सांसद और केन्द्रीय मंत्री सुषमा स्वराज ने बीते साल नसरुल्लागंज क्षेत्र के हाथीघाट और नाहरखेडा में आश्वस्त किया था कि फसल बीमे का लाभ मिले इसलिए खेत को इकाई माना जाए, इसकी लड़ाई हम लड़ रहे हैं। अब तो वे खुद केंद्र सरकार में हैं तो क्या वे इसका लाभ इस साल प्रभावित किसानों को दिला पाएंगी। भाजपा का सहयोगी भारतीय किसान संघ लम्बे समय से पटवारी हल्के की जगह खेतों को इकाई मानकर बीमा करने की मांग करता रहा है।

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