इंदौर ! मध्य प्रदेश में डायरिया जैसी बीमारियों से हर वर्ष 28 हजार बच्चों की मौत होती है। यह जानकारी सोमवार को इंदौर में आयोजित एक मीडिया कार्यशाला में दी गई। इस कार्यशाला में मौजूद विशेषज्ञों का अभिमत था कि मौतों के इस आंकड़े को आगामी वर्षो में आमजन में जागृति लाकर नियंत्रित किया जा सकता है। स्वास्थ्य विभाग के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था यूनिसेफ द्वारा आयोजित कार्यशाला में बताया गया कि समाज में व्याप्त भ्रांतियों और गलत धारणाओं के कारण राज्य में हर साल पांच वर्ष की आयु तक के 28 हजार बच्चे डायरिया जैसी बीमारियों के चलते मौत का शिकार बन जाते हैं।
राज्य में 27 जुलाई से आठ अगस्त तक चलने वाले डायरिया नियंत्रण पखवाड़े की शुरुआत के मौके पर हुई इस कार्यशाला में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मिशन संचालक फेज अहमद किदवई ने कहा कि आम तौर पर डायरिया को सामान्य बीमारी मान लिया जाता है, मगर समय पर ध्यान न देने से वह जान लेवा बन जाती है। इन मौतों को साधारण उपायों से रोका जा सकता है। जागृति लाने के लिए यह पखवाड़ा मनाया जा रहा है।
इस मौके पर यूनिसेफ की स्वास्थ्य विशेषज्ञ वंदना भाटिया ने बताया कि बच्चों को साफ पानी पिलाने, ओआरएस घोल देने और जिंक की गोली देने जैसे सामान्य उपाय से बच्चों का स्वस्थ्य रखा जा सकता है। इतना ही नहीं, दस्त लगने पर खाना पीना देना बंद करना और स्तनपान न कराना नुकसानदायक होता है।
यूनिसेफ के संचार विशेषज्ञ अनिल गुलाटी ने कहा कि समाज में जागरूकता लाना जरूरी है, तभी बच्चों की असमय होने वाली मौतों को रोका जा सकता है। स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त संचालक डॉ. शरद पंडित ने तैयारियों का ब्योरा दिया।

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