भिण्ड । 6 वर्ष की आयु वर्ग तक के प्रति एक हजार बालकों पर बालिकाओं की संख्या को शिशु लिंगानुपात कहा जाता है। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर शिशु लिंगानुपात में आर्इ गिरावट चिन्ता का विषय मानी गर्इ है।
उäाशय की जानकारी यहां देते हुए कलेक्टर  अखिलेश श्रीवास्तव ने बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर शिशु लिंगानुपात जहां वर्ष 1961 में 976 था, वहीं वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार यह घटकर 914 हो गया है। जबकि मध्यप्रदेश में वर्ष 1961 से 2011 के बीच लिंगानुपात की सिथति इस तरह है। वर्ष 1961 में 967, वर्ष 1971 में 972, वर्ष 1981 में 975, वर्ष 1991 में 941, वर्ष 2001 में 932 एवं 2011 में 912 शिशु लिंगानुपात दर्ज किया गया है।
बेटियां संसार की सबसे सुन्दर —तियां मानी गर्इ हैं। इसके होने से घर में रौनक होती है। बेटियां न सिर्फ घर, बलिक पूरे समाज को खुशनुमा बनाती हैं। इस सबके बावजूद न जाने क्यों हमारे परिवेश में बेटियों के होने को नकारा जाता है।

आज विकास के दौर में आधुनिक चिकित्सीय साधकों की उपलब्धता से माता-पिता के पास यह विकल्प होते हैं कि वे यह तय कर सकें कि उनके परिवार में आने वाली संतान बेटा हो या बेटी। यहीं से समाज में घटते लिंगानुपात की विषमता की शुरूआत होती है। वर्ष 2011 की जनसंख्या के आंकड़ों ने फिर से हम सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। हम विकास की दौड़ में भले ही कितने भी आगे होने का दावा करते हैं, परन्तु समाज में लोगों की मानसिकता अभी भी रूढिवादी है। आज भी लाखों बेटियों को जन्म लेने के पहले ही मार दिया जाता है।
कलेक्टर  श्रीवास्तव ने बताया कि वर्ष 2011 की राष्ट्रीय जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश के विभिन्न राज्यों में शिशु लिंगानुपात में आर्इ गिरावट चिन्ताजनक है। इनमें से जम्मू कमीर में वर्ष 2001 में 941 एवं 2011 में 859, महाराष्ट्र में वर्ष 2001 में 913 एवं वर्ष 2011 में 883, राजस्थान में वर्ष 2001 में 909 एवं वर्ष 2011 में 883, उत्तराखण्ड में 2001 में 908 एवं वर्ष 2011 में 886, मध्यप्रदेश में वर्ष 2001 में 932, एवं वर्ष 2011 में 912, उड़ीसा में वर्ष 2001 में 953 एवं वर्ष 2011 में 934, आन्ध्रप्रदेश में वर्ष 2001 में 961 एवं वर्ष 2011 में 943, उत्तरप्रदेश में वर्ष 2001 में 916 एवं वर्ष 2011 में 899, बिहार में वर्ष 2001 में 942 एवं वर्ष 2011 में 933, हरियाणा में वर्ष 2001 में 819 एवं वर्ष 2011 में 830 तथा पंजाब में वर्ष 2001 में 798 एवं वर्ष 2011 में 846 लिंगानुपात रहा है।
आंकड़ों के अनुसार देश के 27 राज्यों एवं केन्æ शासित प्रदेशों में शिशु लिंगानुपात में गिरावट दर्ज की गर्इ है। साथ ही देश के 50 प्रतिशत जिलों में शिशु लिंगानुपात में राष्ट्रीय औसत की तुलना में अधिक गिरावट आर्इ है।
कलेक्टर श्रीवास्तव के मुताबिक कम होते लिंगानुपात की इस भयावह सिथति में सबसे ज्यादा योगदान प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण सुविधा ने दिया है। अनुमान है कि भारत में 2001 से 2007 के बीच में प्रति वर्ष 6,01,468 बेटियां प्रसव पूर्व लिंग चयन के कारण जन्म नहीं ले पायीं अर्थात 2001 से 2007 के बीच भारत में प्रसव पूर्व लिंग चयन के कारण प्रतिदिन 1600 बेटियां जन्म नहीं ले पायीं। पंजाब राज्य में 2001 से 2007 के बीच में Þलापता बेटियोंß की अनुमानित संख्या 35,833 प्रति वर्ष रहीं, जो कि जन्म नहीं ले पाने वाली बेटियों का 16.2 प्रतिशत है। हरियाणा में यह संख्या 33,588, जम्मू कश्मीर में 9,987, दिल्ली में 11,833, राजस्थान में 71,931, गुजरात में 47,503, उत्तर प्रदेश में 1,95,899, हिमाचल प्रदेश में 4,468, बिहार में 76,160, महाराष्ट्र में 55,053, झारखण्ड में 12,718, केरल में 3,697, आन्धप्रदेश में 8,621, असम में 3,832 एवं कर्नाटक में 1,942 रही है,जबकि हमारे मध्यप्रदेश में 17,261 बेटियां जन्म नहीं ले पायीं।

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