भोपाल ! मध्य प्रदेश में तीन साल पहले उजागर हुए व्यापम घोटाले की गूंज अभी थमी भी नहीं है कि यहां एक और भर्ती घोटाला उजागर हो गया है. इस बार प्रदेश में दूसरी बड़ी लेकिन, सबसे अहम समझी जाने वाली भर्ती एजेंसी मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग में गड़बडिय़ां हुई हैं. आयोग द्वारा कुछ साल पहले उच्च शिक्षा विभाग में की गई प्रोफेसरों की सीधी भर्ती में भारी अनियमितता हुई है. यह बात मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा विभाग की जांच रिपोर्ट में सामने आई है. जांच समिति ने रिपोर्ट में इस मामले की विशेष जांच दस्ते (एसटीएफ) से जांच करने की सिफारिश की है. व्यापम घोटाले की जांच भी एसटीएफ ने ही की थी और उसके बाद यह सीबीआई को सौंप दी गई.जिनको देखते हुए उच्च शिक्षा विभाग में आयुक्त कार्यालय द्वारा एक चार सदस्यीय जांच समिति का गठन किया गया था. उसी समिति ने हाल में अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी है. रिपोर्ट में दो मुख्य आपत्तियां जताई गई हैं. पहली यह है कि भर्ती प्रक्रिया पूरी होने के बाद आयोग ने अनुभव प्रमाण पत्रों से जुड़ा स्पष्टीकरण जारी किया. जनवरी, 2009 में जो विज्ञापन जारी किया गया था उसमें केवल इतना उल्लेख था कि दस वर्ष का अनुभव अनिवार्य है. इसके लिए किस तरह के संस्थानों का अनुभव मान्य किया जाएगा इस बारे में कोई उल्लेख नहीं किया गया. जबकि बाद में स्पष्टीकरण जारी किया गया कि अनुदान प्राप्त गैरसरकारी संस्थाओं का अनुभव भी मान्य होगा. नियमानुसार इस तरह की सारी जानकारी मूल विज्ञापन में दी जानी चाहिए. दूसरी आपत्ति यह है कि कई अभ्यर्थियों द्वारा दिए गए अनुभव प्रमाण पत्र संदिग्ध हैं. भर्ती के लिए दस वर्ष का अनुभव और पीएचडी की डिग्री को अनिवार्य किया गया था. जांच में पाया गया कि अनुदान प्राप्त गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा दिए गए कुछ चयनित उम्मीदवारों के अनुभव प्रमाण पत्र सही नहीं हैं. ऐसी संभावना है कि अभ्यर्थियों ने फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र लगाए हैं और आयोग द्वारा उनकी प्रमाणिकता की जांच भी नहीं की गई है. रिपोर्ट में अनुभव प्रमाण पत्रों की गहन जांच कराने के निर्देश दिए गए हैं.
यह जनवरी, 2009 की बात है जब लोक सेवा आयोग ने उच्च शिक्षा विभाग में प्रोफेसरों की भर्ती के लिए 385 पदों का विज्ञापन जारी किया था. हालांकि बाद में नियुक्ति केवल 256 पदों पर ही की गई. इसके तहत प्रोफेसर पद पर सीधे साक्षात्कार के माध्यम से नियुक्ति की जानी थी. वर्ष 2011 के मध्य में यह प्रक्रिया पूरी हुई थी. इस बीच भर्ती को लेकर समय-समय पर कई शिकायतें होती रहीं
यह जांच समिति आयुक्त उच्च शिक्षा के द्वारा गठित की गई थी. जांच रिपोर्ट की शुरूआत ही इस बात से है कि भर्ती प्रक्रिया से जुड़ी मूल नस्ती शासन से अप्राप्त है. समिति द्वारा कई बार मांगे जाने के बाद भी उसे मूल फाइल उपलब्ध नहीं कराई गई. इस वजह से जांच का दायरा बहुत ही सीमित रहा. समिति ने आयुक्त कार्यालय में उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर ही अपनी जांच करके रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी. आयुक्त की टिप्पणी से स्पष्ट है कि उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव की ओर से जांच में सहयोग नहीं किया गया है।
संघ की तरफ भी उठ रही संदेह की उंगली
जिस समय यह भर्ती प्रक्रिया चली उस दौरान प्रोफेसर पीके जोशी मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष थे. उनका कार्यकाल 13 जून 2006 से 28 सिंतबर, 2011 तक था. जोशी के कार्यकाल के अंतिम दिनों में ही चयन प्रक्रिया पूरी हुई थी. आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि का माना जाता है. इससे पहले व्यापम घोटाले में भी संघ से संबंधित लोगों के नाम आए थे. संघ के उच्च पदाधिकारियों पर आरोप लगे थे कि कई चयन उनकी सिफारिश के आधार पर हुए हैं। बताया जाता है, कि इस भर्ती के दौरान भी प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ही थे. शर्मा पहले ही व्यापम घोटाले के मुख्य आरोपी हैं. फिलहाल वे जमानत पर जेल से बाहर हैं।
मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग ने भर्ती नियमों का पालन नहीं किया। एक बार चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद शर्तों में किसी तरह के बदलाव नहीं होते. अगर ऐसा करना अनिवार्य हो तो पहले के आवेदनों को रद्द कर दोबारा आवेदन मंगाए जाते हैं। आयोग द्वारा प्रस्तुत सूची के आधार पर उच्च शिक्षा विभाग ने चयनित उम्मीदवारों की नियुक्तियां की थीं. यह पहली बार नहीं है जब मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग पर सवाल उठे हों. इसके पहले भी परीक्षाओं के पेपर लीक मामले में आयोग संदेह के घेरे में आ चुका है. वर्ष 2012 में आयोग द्वारा आयोजित एक परीक्षा का पेपर लीक होने के बाद पूरी परीक्षा रद्द करनी पड़ी थी।

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