सोनागिर। विपरीत स्थिति आते ही ज्यदातर लोग अपना धर्म छोड़ इधर-उधर भटकने लग जाते हैं, जो यह दर्शाता है कि तुम्हें अपने धर्म और भगवान पर भरोसा नहीं है। आपका इधर-उधर भटकना कोई पाप नहीं है किंतु ऐसा कर आप अपने धर्म और भगवान का अपमान जरूर कर रहे हो। इसलिए सबसे पहले अपने धर्म और भगवान पर विश्वास और आस्था होना बहुत जरूरी है। यह विचार क्रांतिकारी मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने आज रविवार को सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सागर सभागृह में संबोधित करते हुए कही!
मुनिश्री ने कहा आपके अंदर इतनी श्रद्धा और आस्था होनी चाहिए कि यदि मुझे मरना भी पड़े तो मर जाऊंगा किंतु मन में तनिक भी संशय नहीं बल्कि अटूट श्रद्धा होनी चाहिए। ऐसी श्रद्धा जिस श्रद्धालु के अंदर धर्म और भगवान के प्रति होगी, उसका दुनिया की कोई भी शक्ति बांल-बांका नहीं कर सकती। उन्होंने यह भी कहा कि संकट के समय भगवान याद आते हैं। यदि केवल संकट के समय भगवान को याद करते हो तो फिर तुम्हारा संकट कम हो ही नहीं सकता। इसलिए हम सभी को अच्छे-बुरे सभी समय में भगवान की भक्ति करते रहना चाहिए।
मुनिश्री ने कहा कि जिस आदमी को सोने के लिए नींद की गोली लेनी पड़े और जागने के लिए घड़ी या मोबाइल में अलार्म लगाना पड़े, उससे दुखी और परेशान आदमी कोई और नहीं हो सकता। दिनचर्या और व्यवहार को ठीक किया जाए।
मुनिश्री ने कहा कि सच्चा भक्त दुनिया की परवाह नहीं करता। दुनिया क्या बोलती है, सोचती है और करती है, इसकी उसे कोई परवाह नहीं होती। वह तो परमात्मा से कहता है कि हे प्रभु जिसमें तेरी रजा, उसमें मेरा मजा। जगत और भक्त का कभी मेल नहीं हो सकता। सच्चे हो तो किसी की परवाह मत करो।
मुनिश्री ने कहा कि विदेश की संस्कृति का सिद्धांत है रहो होटल में, मरो हास्पिटल में। भारत की महान संस्कृति का सिद्धांत है जिओ शान से, मरो आराम से। मरो तो ऐसे मरो कि सबको याद रहो। विदेशी संस्कृति लर्निंग और अर्निंग सिखाती है। भारतीय संस्कृति लिविंग यानी जीना सिखाती है। भारतीयता को अपनाओ।