सोनागिर। देश और समाज में उन्नति और विकास के लिए, बच्चों के भविष्य के निर्माण के लिए शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। शिक्षा अगर कर्तव्यनिष्ठ हो तो देश का हर बच्चा विवेकानंद ,तीर्थंकर महावीर, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, जैसा महान व्यक्तित्व वाला बन सकता है। शिक्षा का व्यापार नहीं शिक्षा का प्रसार होना चाहिए। जब शिक्षा का व्यापार होता है। तो वह सरस्वती मां का अनादर और अपमान होता है। विद्यालय व्यापार का हाव नहीं सरस्वती मां का मंदिर है। यह विचार क्रांतिवीर मुनि श्री प्रतीक सागर जी महाराज ने रविवार को सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सागर सभागृह में शिक्षक सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए कही।

मुनिश्री ने एक सफल शिक्षक के गुण बताते हुए कहा कि वह क्रोधी नहीं होना चाहिए, लालची नहीं होना चाहिए, करुणा वान और प्रेम से भरा होना चाहिए। जिसके चेहरे पर हमेशा प्रसन्नता हो । सदाचरण युक्त और धूम्रपान, नशीले पदार्थों का त्यागी होना चाहिए। यह गुण अगर शिक्षकों में आ जाएं तो वहीं शिक्षक गुरु के सर्वोच्च पद का सम्मान प्राप्त करने योग्य हैं। एक इंजीनियर भ्रष्ट होता है तो केवल एक पुल टूटता है, कुछ लोग मरते हैं। एक डॉक्टर भ्रष्ट होता है तो कुछ मरीजों की जान जाती है। मगर जब शिक्षक भ्रष्ट होता है कर्तव्य विमुख होता है तो देश का भविष्य समाप्त हो जाता है। टी-टीचिंग भी होती है टी से टेररिस्ट भी बनाया जा सकता है, टी से बच्चे के अंदर टैलेंट भी पैदा किया जा सकता है। महात्मा गांधी कहा करते थे की शिक्षक कर्तव्य वादी होना चाहिए अधिकार वादी नहीं क्योंकि कर्तव्य में अधिकार छुपा हुआ है। आज कुछ भ्रष्ट शिक्षकों ने गलत आचरण के कारण शिक्षक की मान मर्यादाओं को कलंकित कर दिया है। जिसके कारण विद्यार्थियों के मन में उनके प्रति जो सम्मान था वह खत्म हो गया है ।

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