भिण्ड। परम पूज्य, बुन्देलखण्ड के प्रथमाचार्य, युग प्रमुख श्रमणाचार्य, समता मूर्ति, गणाचार्य श्री 108 विराग सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुये अपनी मंगल पियूष वाणी में कहा अनादि काल से जन्म-मरण की श्रंखला चली आ रही है व्यक्ति जन्म लेता है और आयु प्रमाण समय व्यतीत कर मृत्यु को प्राप्त कर लेता है इसी तरह अपनी जिंदगी व्यतीत कर देता है जब तक व्यक्ति आगम को नहीं जानता तब तक उनके जीवन में कई तरह-तरह की समस्यायें आकर खड़ी हो जाती है आज व्यक्ति को थोड़ा सा ही ज्ञान होता है वह अपने आपको बहुत होशियार समझता है उन्हें लगता है कि हमने सब कुछ पढ़ लिया वे ये भूल जाते है कि शास्त्र अनंत होते है और पढ़ाई छोड़ देता है विजनिस की ओर कदम बढ़ाने लगता है तुम जितनी कीमत विजनिस की करते हो पढ़ाई कर लोगे तो उससे ज्यादा तुम्हें सर्विस में मिलेगा मात्र पुस्तको से ही ज्ञान नहीं आता सदैव पुस्तको के कीड़ा नहीं बनना विद्या के साथ-साथ बुद्धि का भी प्रयोग करना पुस्तकों को पढ़ने के साथ-साथ आप उसका चितंन भी करो केवल रटते ही मत रहो क्योंकि रटंत विद्या ज्यादा समय तक नहीं रहती जिस विषय को हमने अपने चितंन में उतारा है अनुभव किया है उसे हम कालान्तर में कभी नहीं भूलते विद्या और बुद्धि अंतर होता है विद्या के साथ-साथ बुद्धि अंदर से होती है।
आचार्य श्री ने कहा कि जिस शिष्य के लिये गुरू रूपी सलाहकार मिल जाते है वह हर कार्य सम्यक् विवेक के साथ करता है जो बुद्धि और विवेक से करता है तो हर जगह सफलता लेकर लौटता है आज जमाना बहुत बदल गया है पहले के बच्चे छुटटी होने पर खुशी मनाते थे और स्कूल जाने से कतराते थे लेकिन आज के बच्चो का प्ु पावर बहुत बड़ा हुआ है आज माइनडेड बच्चे पैदा होने लगे है उन्हे स्वंय अपनी पढ़ाई की चितंा है वो कोई प्रोग्राम में जाना पसंद नहीं करते हमारा कोर्स पिछड़ जायेगा उन्हें अपने भविष्य की चिंता है जो अच्छे संस्कारित बच्चे होते हे अच्छे किस्म के बच्चे होते है वे अपनी सपमि के विषय में स्वयं सोच लेते है कि मै बड़ा होकर ऐसा बनूॅगा लेकिन जो संस्कारित नहीं होते उन्हे अपने भविष्य की कोई चिंता नहीं होती बुरी संगति में पड़कर अपने भविष्य को भी बिगाड़ लेता है इसलिये आचार्य भगवन् कहते है कि बुद्धि के साथ विवेक का भी आश्रय लो आज जितने भी महापुरूष हुए सभी ने अपनी बुद्धि और विवेक से काम किया तो सफलता पा ली और अपने परम लक्ष्य को प्राप्त का लिया अपना कल्याण कर लिया।
आचार्य श्री ने कहा कि दुकान मकान में मत लगे रहो धर्म करो क्योंकि धन धर्म करने से ही आता है दिन-रात धन कमाने में व्यक्ति लगा हुआ है ध्यान रखना दुकान से पैसे मिल सकते है पर जीवन नहीं मिल सकता दुकान से व्यवहारिक मिल सकती है पर आध्यात्मिकता नहीं मिल सकती जो व्यकितत्व का निर्माण यहॉ मिल सकता है वह दुकान में नहीं मिल सकता दुकान में निर्वाह करना सीख सकते हो निर्वाण की कला तो हमें सदगुरू ही सिखाते है क्योंकि सच्चा आनंद सच्ची शांति धर्म से ही मिलती है आज हमें मिला है धर्म करने से ही मिला है जो कल किया था वो ही आज मिल रहा है आज करोगे तो आगे मिलेगा अगर आज धर्म नहीं कर पाये तो आगे तुम्हारा क्या होगा। धर्म को नैतिकता को, आत्म कल्याण की विधि को मत छोड़ो तुम्हारा भविष्य तुम्हें ऊॅचा उठायेगा केवल धर्म करते रहो पुण्य के कार्य करते रहो इन सूत्रो को अपने अंदर उतारने का प्रयोग करो जीवन की उस परम लक्ष्य को प्राप्त कर निर्वाण की यात्रा करो। इस अवसर पर गणाचार्य विराग सागर महाराज से मिलने गुजरात, राजकोट, अहमदावाद आदि स्थानों से भक्तगण पधारें।

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