लखनऊ। कौन-कौन मदद करता था? एसटीएफ के यह सवाल दागते ही विकास दुबे ने 50 से ज्यादा पुलिस कर्मियों के नाम गिना दिए। उसे जुबानी याद थे इतने नाम। उन्नाव, कानपुर और लखनऊ के कई नेताओं के भी उसने नाम लिए। उसने कबूला कि सीओ देवेंद्र मिश्र उसे कानून की हद में रहने की हिदायतें देते रहते थे लेकिन उसे यह कतई पसंद नहीं था। वह चाहता था कि उसके गांव और आसपास के इलाके में सिर्फ और सिर्फ उसका ही कानून चले। इसी वजह से उसने सीओ और उनकी टीम को सबक सिखाने के लिए यह कारतूत अंजाम दी। यह दुर्दांत विकास दुबे का एसटीएफ के सामने कबूलनामा है, जिसने उसे पूछताछ में खुलकर बताया। करीब दो घंटे तक पूछताछ में वह एसटीएफ के हर सवाल का जवाब देता रहा। जब यह पूछा गया कि सीओ से ऐसी दुश्मनी क्या थी कि उसे इतनी निर्दयता से मारा। वह बोला कि सीओ उसके हर मामले में दखल देते थे। चौबेपुर का हर पुलिसकर्मी उसकी बात मान लेता था । जब से यह सीओ आए थे, तब से उसे काफी जलालत झेलनी पड़ रही थी।
एसटीएफ के एक अधिकारी के मुताबिक विकास रास्ते भर उतना ही बोल रहा था, जितना उससे पूछा जा रहा था। पुलिस कर्मियों की हत्या पर जब उससे सवाल किया गया तो उसने कहा कि गुस्से में इतना बड़ा काण्ड हो गया लेकिन उसे इतनी सख्त कार्रवाई का अंदेशा एकदम नहीं था। जब उसके घर को ढहाया जाने लगा तब ही उसे लग गया था कि अब उसका पकड़ा जाना तय है। इसके बाद ही उसने शिवली छोड़ा था और कानपुर से निकल गया था।
पत्नी को जिला पंचायत सदस्य बनाने के लिए उसने लखनऊ से लेकर कानपुर के कई नेताओं से मुलाकात की थी। छोटे स्तर के कई नेताओं की वह मदद भी करता था। उसने उन्नाव और कानपुर में दो राजनैतिक पार्टी के नेताओं के एक दर्जन से अधिक नाम लिए। इनमें से ही एक नेता ने उसे लॉकडाउन के दौरान कई अफसरों से मिलवाया था।
विकास ने यह कहकर एसटीएफ को चौंका दिया कि लॉकडाउन के दौरान जिला प्रशासन की ओर से उसे कोविड पास भी दिया गया था। यह पास उसे एक प्रशासनिक अधिकारी ने मुहैया कराए थे। उससे कहा गया था कि इस पर अपना नाम लिख लेना। दावा किया जा रहा है कि यह खुलासा विकास ने उज्जैन पुलिस के सामने ही कर दिया था।