भोपाल. मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने शिवराज मंत्रिमंडल के आकार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उन्होंने कोर्ट में याचिका दायर कर सवाल उठाया है कि शिवराज मंत्रिमंडल का आकार विधानसभा में सदस्यों की संख्या को देखते हुए वैधानिक व्यवस्था के खिलाफ है. इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के सीएम शिवराज सिंह चौहान और मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया है.
मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर शिवराज मंत्रिमंडल के विस्तार का मुद्दा उठाया है. याचिका में कहा गया है कि वर्तमान विधानसभा सदस्यों की संख्या के मुताबिक 34 मंत्री नहीं बनाए जा सकते. विधानसभा में जितनी सदस्य संख्या है उसके हिसाब से विधानसभा सदस्यों की 15% संख्या से ज्यादा मंत्री नहीं बनाए जा सकते. ये वैधानिक व्यवस्था है. लेकिन शिवराज मंत्रिमंडल में तय संख्या से ज़्यादा मंत्री बनाए गए हैं. प्रजापति ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एनपी प्रजापति की इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के सीएम शिवराज सिंह चौहान और मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया है. प्रजापति की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और विवेक तनखा ने पक्ष रखा.
मध्यप्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति ने याचिका दायर करते हुए मंत्रिमंडल विस्तार को चुनौती दी. याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और विवेक तनखा ने दलील दी कि प्रदेश में हुआ मंत्रिमंडल विस्तार संविधान के अनुच्छेद 164 1ए का स्पष्ट उल्लंघन है. आर्टिकल 32 के तहत दायर याचिका में मुद्दा उठाया गया है कि हाल ही में शिवराज सरकार ने 28 मंत्रियों की नियुक्ति की है, जबकि पूर्व में पहले से ही छह मंत्री नियुक्त किए गए थे. इस लिहाज से मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल में सदस्यों की कुल संख्या 34 हो गई है.
अगर नियम की बात की जाए तो धारा 164ए के तहत विधानसभा की कुल सदस्यों के 15 प्रतिशत सदस्य ही मंत्री बनाए जा सकते हैं. जिसका कुल आंकड़ा सिर्फ 30 मंत्रियों का होता है. बावजूद इसके चार मंत्री ज्यादा बना दिए गए हैं. याचिकाकर्ता की दलील को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को नोटिस जारी किया है. गौरतलब है कि मंत्रिमंडल गठन के साथ ही यह बात उठ रही थी कि नियम के विपरीत जाते हुए सदस्यों की संख्या ज्यादा कर दी गई है जो कानून का उल्लंघन है. अब पूरे मामले को लेकर विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का रास्ता अख्तियार किया है.
इस याचिका का मूल आधार विधानसभा की वर्तमान विधायकों की संख्या है. याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तनखा के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 164 1ए के तहत किसी भी विधानसभा में मंत्रिमंडल की संख्या उसकी वर्तमान विधानसभा विधायकों की संख्या के 15 प्रतिशत से ज्यादा की नहीं होनी चाहिए. यानी संख्यात्मक रूप से समझें तो अगर विधानसभा में वर्तमान में 230 विधायक होते तो कुल 34 मंत्री बनाए जा सकते थे. लेकिन जिस दिन मंत्रिमंडल का गठन हुआ, उस वक्त 22 विधायक इस्तीफा दे चुके थे, जबकि 2 सीटों पर उपचुनाव होने थे. ऐसे में 206 विधायकों के मत से मंत्री परिषद की कुल संख्या 30.9 होनी चाहिए.