ग्वालियर। मीसा बंदियों के दस्तावेजों का सत्यापन कर उन्हें सम्मान निधि दिए जाने के संबंध में राज्य शासन के आदेश को चुनौती देते हुए प्रस्तुत की गई याचिका को ग्वालियर उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया ने इस महत्वपूर्ण आदेश के साथ ही यह भी कहा है कि यदि किसी अपात्र मीसा बंदी द्वारा गलत तरीके से पेंशन ली गई है तो उसे यह राशि वापस करना होगी।

न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया ने अपने आदेश में कहा कि राज्य शासन द्वारा मीसा बंदियों को लेकर जो फैसला लिया गया है वह राज्य शासन के अधिकार क्षेत्र के तहत है। यह फैसला पूर्व सरकार द्वारा लिया गया था। शासन द्वारा मीसा बंदियों के दस्तावेजों के सत्यापन में यदि ऐसा पाया जाता है कि किसी ने गलत तरीके से पेंशन ली है तो उसके द्वारा ली गई पेंशन वापस ली जा सकती है।

ग्यान सिंह द्वारा उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत करते हुए कहा गया था कि प्रदेश में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद द्वेषपूर्ण तरीके से मीसा बंदियों की पेंशन को रोका गया है। याचिका में शासन द्वारा जारी किए गए सर्कुलर को चुनौती दी गई थी। इस मामले में शासकीय अधिवक्ता पवन कुमार रघुवंशी का कहना था कि शासन द्वारा भौतिक सत्यापन का निर्णय इस योजना के दुरुपयोग के कारण लिया गया था। यह निर्णय पूर्व की सरकार द्वारा लिया गया था। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि सरकार को यह अधिकार है अगर कोई अपात्र व्यक्ति पेंशन पा रहा है तो उसके दस्तावेजों की जांच कर उसकी पेंशन रोक सकती है।

मध्यप्रदेश के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 29 दिसंबर 18 एवं 19 जनवरी 2019 को प्रदेश के सभी आयुक्त एवं कलेक्टरों को निर्देश दिए थे कि मीसा बंदियों का सत्यापन कर उन्हें दी जाने वाली सम्मान निधि के भुगतान की प्रक्रिया का फिर से निर्धारण किया जाए। राज्य शासन ने इसके लिए सभी मीसा बंदियों का जिन्हें पेंशन दी जा रही थी उनका भौतिक सत्यापन करने के निर्देश दिए थे। मीसा बंदियों एवं दिवंगत मीसा बंदियों के आश्रितों का भौतिक सत्यापन की कार्यवाही स्थल पर जाकर करने के निर्देश दिए गए थे। सत्यापन के बाद मीसा बंदियों को सम्मान निधि वितरण प्रारंभ करने के निर्देश दिए गए थे। इससे पूर्व शासन ने 29 दिसंबर 2019 को एक आदेश जारी करते हुए मीसा बंदियों का सत्यापन एवं उन्हें दी जाने वाली सम्मान निधि के भुगतान की प्रक्रिया का पुनर्निर्धारण करने के निर्देश दिए थे।

तत्कालीन भाजपा सरकार ने जुलाई 1975 से 13 मार्च 1977 के बीच कांग्रेस सरकार द्वारा लगाए गए आपात काल के दौरान जिन लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाला गया था उन्हें पेंशन देने की घोषणा की थी। पहले यह पेंशन दस हजार रुपए थी जिसे बढ़ाकर 25 हजार रुपए कर दिया गया था।

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