इंदौर ! आज हम एक ऐसे गाँव के सफऱ पर हैं, जो कई मायनों में अनूठा है। यह गाँव साफ-सुथरा और पानीदार तो है ही, प्रदेश में पहली बार यहाँ कि पंचायत ने लोगों से कर के रूप में करीब आठ लाख रूपए भी इक_ा किए हैं, जिनका उपयोग अब ग्राम विकास की बड़ी योजनाओं में किया जा रहा है। यह गाँव पूरी तरह वाई-फाई हो चुका है। गाँव की गलियों में न कीचड़ है और न ही कोई कचरे का निशान मिलता है।
इंदौर से महज 22 किमी दूर खंडवा रोड पर पहाड़ों से घिरा एक गाँव है सिमरोल। करीब 13 हजार की आबादी वाले इस गाँव की शक्ल बीते तीन सालों में काफी कुछ बदल गई है। मालवा और निमाड़ की सीमा रेखा पर बसे इस गाँव की हालत अन्य गावों की तरह ही पहले बदतर हुआ करती थी। लोग गर्मियों में बाल्टी-बाल्टी पानी के लिए तरसते रहते। गलियों में कूड़ा करकट फैला रहता और ज्यादातर लोग सुबह उठते ही शौच के लिए जंगल जाते थे। यहाँ हर मंगलवार पंचायत जन सुनवाई भी करती है, जिसमें त्वरित निराकरण करते हैं।
लेकिन आज सिमरोल की छवि दूसरी ही है। इस गाँव का अध्ययन करने दूर-दूर से लोग यहाँ आने लगे हैं। अब यहाँ पंचायत ने ट्रेक्टर से घर-घर से कचरा उठाने की पहल शुरू की है। यदि किसी ने ट्रेक्टर को देने के बजाए कचरा गलियों में या अन्य जगह फेंका तो पंचायत उससे जुर्माना वसूल करती है। ट्रेक्टर से कचरे को दो किमी दूर ले जाकर उसका प्रबन्धन किया जाता है। हर घर शौचालय बनाने के लिए सस्ते शौचालय का माडल विकसित किया गया है। जो शौचालय दस से बारह हजार तक पड़ता है, वही इस तकनीक से तीन हजार में ही बन जाते हैं। इसका अध्ययन करने के लिए पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश सहित आठ राज्यों के आइएएस और बड़े अधिकारी आ चुके हैं। आईआईटी इंदौर के विद्यार्थियों ने तो इस पर शोध भी किया है।
पंचायत ने प्रदेश में पहली बार ग्रामीणों से कर के रूप में आठ लाख रूपए इक_ा किए हैं। इसका उपयोग अब ग्राम विकास में होगा। पंचायत ने चंदा कर 360 घरों में शौचालय बनाए हैं, जिन्हें सरकारी मदद नहीं मिल पा रही थी। इससे अब पूरा गाँव खुले में शौच से मुक्त हो गया है। गाँव में जलस्तर बढाने के लिए ढाई सौ साल पहले इंदौर की शासिका अहिल्या बाई की बनवाई बावड़ी और दीनदयाल सरोवर को पुनर्जीवित किया है जो अब पानी से लबालब हैं और गाँव भी पानीदार हो गया है। हर दिन 600 परिवारों को पानी दिया जा रहा है।

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