ग्वालियर। भिण्ड जिला प्रशासन ने भिण्ड शहर को साफ-सुथरा बनाने के लिए जन सहयोग से जो मृहिम शुरु की है निश्चित ही एक सराहनीय पहल है, लेकिन नाबालिंग स्कूली बच्चों के हाथों में तसले-फावडे थमाकर सुवह आठ बजे से 11 बजे तक कचरा साफ कराना क्या न्याय संगत है? नगरपालिका के भ्रष्टाचार और अपने नकारापन को छिपाने के लिए प्रशासनिक अमला जिस तरह से शहर के लोगों को गुमराह करके भिण्ड को स्वच्छ बनाने के कार्य कर रहा है उससे कई तरह के सवाल लोगों के मन में उठने लगे है।
मध्यप्रदेश के भिण्ड शहर को केन्द्र सरकार के शहरी विकास मंत्रालय द्वारा कराए गए सर्वे में देश में सबसे गंदे शहर को दर्जा मिलने के बाद कुछ लोगों ने भिण्ड को स्वच्छ बनाने के लिए पहल शुरु की, और सप्ताह में एक दिन रविवार को प्रतीकात्म मृख्य मार्ग एवं बाजार में सफाई अभियान शुरु किया। इस अभियान में कृछ नेताओं और अधिकारियों ने भी शिरकत की, लेकिन यह अभियान कारगर सावित होता नहीं दिखा तो नगरपालिका भिण्ड के प्रभारी मुख्य नगरपालिका अधिकारी एवं एसडीएम बीबी अग्निहोत्री ने जिले के नवागत कलेक्टर इलैया राजा टी को इसमें शामिल कर के बस स्टेण्ड क्षेत्र में साफ-सफाई कराके खूब वाह-वाही बटोरी, लेकिन दो दिन पूर्व शहर के सभी विद्यालयों के संचालकों की मीटिंग बुलाकर छात्रों से शहर में कचरा साफ कराने का फरमान सुना दिया। इस फरमान पर कुछ स्कूल के संचालकों ने बच्चों के अभिभावकों के विरोध के नाम पर आपति जताई, लेकिन कलेक्टर ने दो टूक कह दिया आपको बताए गए क्षेत्र में अपनी संस्था के छात्रों से सफाई कराना है, और इसके लिए तसला-फावडे, झाडू, मॉस्क आदि की व्यवस्था भी करना होगी। जिला प्रशासन के मुखिया के आदेश की नाफरमानी करने की हिमाकत न करते हुए आज शहर के विभिन्न इलाकों में अवयस्क स्कूली बच्चों ने न सिर्फ झाडू लगाई बल्कि तसला-फावडे से कई जगह पर पडे कचरे के ढेरों को साफ किया। अगर इन बच्चों से कोई स्कूल संचालक आवश्यकता पडने पर एक दिन भी संस्था में सफाई करा ले तो अभिभावक तो विरोध दर्ज कराते ही है प्रशासन की कार्यवाही के दायरे में आ जाते है। मानवाधिकार, बालश्रम आदि कानून के उल्लंघन के दायरे में आ जाते है। प्रशासन का यह दोहरा मापदण्ड आखिर क्यों? जनहित में है या अपनी नाकामी और अकर्मण्यता छिपाने के लिए? मेरा मकसद सफाई अभियान पर अंगुली उठाने का कतई नहीं है। लेकिन जिस तरह से जिला प्रशासन ने स्कूल के संचालकों को निर्देश देकर नाबालिंग बच्चों से घण्टों सडकों और गलियों में सफाई कराई, ठीक उसी सख्ती के साथ प्रशासन को नगरपालिका को भी निर्देशित करने की जरुरत है। आज जिन क्षेत्रों में बच्चों ने सफाई की उन क्षेत्रों में फिर से कचरे के ढेर नहीं दिखेंगे, इसकी भी व्यवस्था करनी चाहिए थी। प्रशासन के इस रवैया पर कुछ स्कूल संचालकों ने दबी जुवान आपति जताई तो शहर के नागरिक भी इस प्रयोग की निंदा करते सुने गए। लोगों का तर्क था कि जब स्कूल के बच्चे सडकों और गलियों में सफाई करेंगे तब नगरपालिका का अमला क्या करेगा? वहीं कुछ लोगों को यह कहते सुना गया है कि प्रशासन छात्रों की वजाय नगरपालिका के सफाई अमले के साथ पार्षदों, कर्मचारियों के साथ ही उनके परिजनों को भी तो इस अभियान में जोड सकता था। परिषद के लोग शहर के विकास व अन्य मसलों पर होने वाली मीटिंग में शामिल होने का मानदेय लेते है और हर माह करीबन एक करोड रुपया सफाई कर्मचारियों व वाहनों आदि पर सफाई व्यवस्था के नाम पर खर्च होते है, तब भी शहर की सफाई व्यवस्था चौपट है, सारा शहर गंदगी से अटा पडा है और गलियों में कीचड और पानी भरा होने से मच्छर पनप रहे है। प्रशासन सफाई व्यवस्था पर खर्च हुए करोडों रुपयों की ऑडिट कराकर भौतिक सत्यापन कराकर जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्यवाही करे और शहर में गंदगी फैलाने वालों को नोटिस जारी करके हिदायत दे कि निर्धारित स्थान और समय पर कचरा घर से बाहर फेंके। इसके लिए नगरपालिका को भी शहर में कचरादान रखवाने के साथ ही कचरा उठाने वाली गाडियों की व्यवस्था करके नियमित मानीटरिंग करने की जरुरत है। इसके साथ ही इस अभियान में स्कूली छात्रों की जगह जिम्मेदार नागरिकों, कॉलेज के छात्रों प्रशासनिक अमले को भी जोडा जाए तो इस अभियान की सार्थकता सिद्ध हो सकती है।

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