भिण्ड। मोक्ष मार्ग आनंद का मार्ग है उसमें अतेन्द्र सुख है लेकिन उस मंजिल को पाने के लिए जो रास्ता आपको तय करना है वह कांटो भरा है पग-पग पर कठिनाईयां है। यदि उक्त रास्ते में चलने के लिए सामर्थ है तो ही दीक्षा लेना अन्यथा अभी भी वापस अपने पूर्व स्थान पर जाने के लिए आप स्वतंत्र है।
आचार्य विशुद्ध सागर जी ने उक्त उदगार नसिया मंदिर प्रंागण जैनश्वरी दीक्षा के समय व्यक्त कर रहे थे। आचार्य श्री ने कहा कि जैन जैनेश्वरी दीक्षा के पश्चात् धरती ही आपका विछोना होगा और आकाश ही आपका चादर और हाथो की भुजा ही आपका तकिया होगा। उन्होने कहा कि दीक्षा उपरांत आप सभी को मुनि धर्म के 28 मूलगुणों का पालन करना होगा और पिच्छी, कमण्डल, शास्त्र के अतिरिक्त कोई भी आंडम्बर न हो यही दिगम्बत्व की पहचान है। विशुद्ध सागर जी ने कहा कि दीक्षा उपरांत हाथो में ही आहर ग्रहण करना होगा तथा पद बिहार करना होगा कभी भी मोबाइल, टेपटॉप, ए.सी., पंखा इत्यादि उपकरणो का उपयोग नही करेगे।
दीक्षा के समय चतुबिध संघ, सहित मुनि श्री विश्रुत सागर, मुनि बिहसंत सागर जी एवं कर्नाटक के भट्टारक नव दीक्षार्थियों के साक्षी रहे।
चारों दीक्षार्थियों का प्रातः तीन बजे से हजारो श्रद्धालुओ के समक्ष केशलोचन किया जाकर सभी का शाही स्नान करवाया गया। तदोपरांत सभी दीक्षार्थियों द्वारा मंदिर में श्री जी की विषेष पूजा अर्चना की।
आचार्य श्री के कहा कि नव दीक्षार्थियों दीक्षा के उपरांत कही कि कभी भी कोई भी आगम के विरूद्ध कार्य नही रहेगा। और न ही एकल बिहार नही करेगा। कार्यक्रम के पश्चात् आयोजक प्रज्ञ संज्ञ प्रमुख राजेन्द्र जैन (बिल्लू) द्वारा उपस्थित जनो का आभार व्यक्त किया।
जब दीक्षा पूर्व भावुक हो गये गुन्नूू भैया –
भिण्ड। ब्रह्मचर्य से सागर गुन्नू जा रहे भिण्ड नगर गौरव सार्थक (गुन्नूू भैया) आचार्य श्री के समक्ष दीक्षा की प्रार्थना के समय उस समय भावुक होकर रो पडे जब वह अपने परिवारी जन और समाज सहित इष्ट मित्रो सहित अपने पूर्व के जीवन (ग्रहस्थ) काल के जाने अनजाने में हुए अपराधो की क्षमा याचना कर रहे थे। उक्त याचना के समय सभी दर्शनार्थियों के आंखो में आंसू आ गये और संभवतः एक क्षण के लिए वैराग्य को धारण करने के भाव उमड पडे तब आचार्य विशुद्ध सागर जी ने अपने बात्सल्य भाव से गुन्नूू भैया को शांत कराया।
नवीन नामो से सुशोभित किया गया नव दीक्षार्थियों को –
भिण्ड। दिगंबर जैन नसिया प्रागंण में आयोजित जैनेश्वरी दीक्षा के उपरांत आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज द्वारा नव दीक्षार्थियों को नवीन नामो से जैन आगम विधि संस्कार से सुशोभित किया। आचार्य जी ने इस अवसर पर कहा कि दीक्षा के बाद व्यक्ति का जीवन प्रांरभ होता है यदि पूर्व का नाम नही हटाया तो परिवार से राग की उत्पत्ति होना स्वाभाविक है। आचार्य श्री ने चारो दीक्षार्थियों के नवीन नामो में प्रथम सबसे कम उम्र के 19 वर्षीय सार्थक (गुन्नूू) भैया को मुनि श्री यशोधर सागर व ब्रं0 मणीकांत भैया को मुनि श्री योग्य सागर जी महाराज, ब्र0 अंकित भैया को मुनि श्री यतीन्द्र सागर जी महाराज, ब्र0 देवास भैया को झुल्लक श्री यत्न सागर जी महाराज के नाम करण किया गया।
अपने दीक्षित स्थान पर ही श्री विशुद्ध सागर जी महाराज न दी दीक्षाऐं –
भिण्ड। वर्ष 1989 में गणाचार्य विराग सागर महाराज ने जिस उदासीन आश्रम नसिया जैन मंदिर प्रांगण में आचार्य विषुद्ध सागर जी महाराज को प्रथमबार छुल्लक दीक्षा प्रदान की थी आज उसी माह आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज ने उसी स्थान पर चारो नव दीक्षार्थियों को दीक्षा प्रदान की गई है। गौर तलब है कि जब विशुद्ध सागर जी ने 30 वर्ष पूर्व विराग सागर महाराज से छुल्लक दीक्षा ग्रहण की थी तब उनका नाम छुल्लक यशोधर सागर जी महाराज रखा गया था और उसी स्थान पर आचार्य श्री ने नगर गौरव गुन्नूू भैया का मुनि यशोधर सागर महाराज से नवाजा है।
दीक्षा पूर्व निकली निकरासी –
भिण्ड। मीडिया प्रभारी रिषभ जैन (अडोखर), अतुल पहाडिया ने बताया कि सिर पर पगडी बांधे जब चारो नव दीक्षार्थीगण धबल वस्त्र में श्रृंगार सहित जब मंदिर में दर्शनो के लिए पहुचें तो मानो ऐसा दृष्य था कि जैसे पांचवे स्वर्ग से देवता आ गये है। जिस प्रकार शादी के पूर्व वर की निकरासी निकाली जाती है उसी प्रकार गाजे-बाजे के साथ चारो दीक्षार्थियों की निकारासी दीक्षा पूर्व घोडे पर बैठालकर निकाली।
क्षण मात्र. में गये पूज्य –
भिण्ड। परिवार और समाज की समान्य स्वीकृति के पश्चात् जैसे ही विधि विधान अनुसार मंत्रोच्चार के दीक्षित किया और संयम का उपकरण पिच्छी एवं कमंडल प्रदत्त किया उस पल चारो दीक्षार्थी पूज हो और श्रंावक उनकी बंदना करने लगे।