ग्वालियर–: धर्म ध्यान केवल एकाग्रता से किया जा सकता है क्यो कि ध्यान का अर्थ भावना और विचार की एकाग्रता है। शुभ भावनाओं और शुभ विचारों से धर्म ध्यान होता है, जबकि अशुभ भावों एवं बुरे विचारों से अशुभ ध्यान होता है। ध्यान का अर्थ भावना और विचारों की एकाग्रता है। यह बात मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज की साधना अनुष्ठान में तानसेन नगर स्थित न्यू कालोनी में व्यक्त किए! मुनिश्री विजयेश सागर महाराज भी मोजूद थे! 

मुनिश्री ने कहा कि केवल आसन लगाने से धर्म ध्यान नहीं होगा। इसके लिए मन पर विजय प्राप्त करना होगी। बुरी भावनाओं एवं अशुभ विचारों से बचने के लिए हम एक निश्चित समय में उचित स्थान पर विशेष आसन में बैठकर ध्यान लगाते हैं, लेकिन मन को तत्व चिंतवन में लगाना आवश्यक है, क्योकि जिसने मन को नियंत्रित कर लिया उसी ने सबकुछ पाया है।

मुनिश्री ने संस्कार और संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डाला। जब संस्कारों का क्षरण होता है, तभी संस्कृति लुप्त होती है। यदि संस्कार पावन बने रहे तो फिर संस्कृति की महानता सबको सुख-शांति देती रहेगी। अच्छे संस्कारों से ही संस्कृति को बचाया जा सकता है, इसलिए इसकी रक्षा करें। महाराज ने कहा कि चाहे भगवान आदिनाथ के जन्म हो या श्रीराम का हो, हमें उनके जीवन से कुछ ना कुछ अच्छाइयां जरूर गृहण करनी चाहिए।

कोरोना वायरस से मुक्ति दिलाने के लिए प्रतिदिन अनुष्ठान चल रहे है!
 जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज 25 से 2 अप्रेल तक साधन, अखण्ड मौन, उपवास एवं अनुष्ठान कोरोना वायरस मुक्ति दिलाने के लिए  आज प्रातः मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ने  ॐ ह्रीं नमः मंत्रो का उच्चारण कर भगवन आदिनाथ का अजय जैन व विजय जैन ने अभिषेक किया! आदिनाथ भगवान की शांतिधारा कोरोना वायरस से बचाने की!  प्रतिदिन हवन कुंड में विश्व मे कोरोना वायरस से बचाने के लिए मंत्रो का उच्चारण कर आहुतिया दी जा रही है!

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