सोनागिर। मनुष्य को भी क्रोध, मान, माया पर विजय प्राप्त करने के लिए विरोधियों को क्षमा समता का भाव रखना चाहिए। जिससे मनुष्य का कल्याण हो सके। क्रोध ऐसी बीमारी है जिससे सभी परेशान रहते हैं क्रोध से कैंसर, हार्ट अटैक आदि बीमारियां होती हैं जब भी क्रोध आए तो हम वह स्थान छोड़ दें और उल्टी गिनती शुरु कर दें और जल ग्रहण करें जब भी क्रोध आ जाता है तो हम बाद में क्षमा मांग लें। आई एम सॉरी कहना ही पर्याप्त नहीं होता है क्षमा पवित्रता है सहिष्णुता है अहिंसा की हरियाली है! यह विचार मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने आज पर्यूषण पर्व के अंतिम दिन सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सभागृह में संबोधित करते हुए कही!
मुनिश्री ने कहा कि आत्मा की खुशहाली है क्षमा सबसे महान तप है ध्यान है स्वाध्याय है जीवन भर पूजा पाठ किया पर क्रोध नहीं छोड़ा तो व्यर्थ है क्षमा फूल है कांटा नहीं क्षमा प्यार है चांटा नहीं, क्रोध करने से कोई महान नहीं होता है क्षमा से महानता मिलती है क्रोध से दुश्मन को मारा जाता है क्षमा से दुश्मनी को मारा जाता है क्षमा करने वाला रात भर सोता है क्रोध करने वाला रात भर रोता है क्षमा हम उनसे मांगते हैं जिनसे हमारा कुछ भी बैर नहीं है क्षमा उनसे मांगे जिनसे हमारा कभी विवाद हुआ या कहासुनी हुई हो वर्ष में एक बार क्षमा मांगने से कुछ नहीं होता है 15 दिन और एक माह और छह माह में क्षमा अवश्य मांगे नहीं तो दुर्गति होती है।
मुनिश्री ने कहा कि क्षमा दूसरों पर होती है उत्तम क्षमा स्वयं पर होती है रक्षा करना निज आतम की क्रोध बड़ा ही विषधर है क्रोधाग्नि मैं हम जलते हैं जलता अपना ही घर है निज घर को अब नहीं जलाना उत्तम क्षमा श्रेयस्कर है।
मुनिश्री ने कहा कि क्षमा हमें सहनशीलता से रहने की प्रेरणा देता है। अपने मन में क्रोध को पैदा न होने देना और अगर हो भी जाए तो अपने विवेक से, नम्रता से उसे विफल कर देना अपने भीतर आने वाले क्रोध के कारण को ढूँढकर, क्रोध से होने वाले अनर्थों के बारे में सोचना और अपने क्रोध को क्षमारूपी अमृत पिलाकर अपने आपको और दूसरों को भी क्षमा की नजरों से देखना अपने से जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए खुद को क्षमा करना और दूसरे के प्रति भी इसी भाव को रखना इस पर्व का महत्व है।