भिण्ड। परम गुरू भक्त, अध्यात्म जगत के राजहंस, समतामूर्ति, युगप्रतिक्रमण प्रवर्तक, राष्ट्र संत, गणाचार्य श्री 108 विराग सागर जी महाराज ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि आज का व्यक्ति मन का दास बना हुआ है मन के अनुसार ही अपने सारे कार्य करता है। मन के व्यक्ति संसार में भटक रहा है क्योकि आत्मा का विनाश करने वाले ये पंचेन्द्रियो के विषय ही है और ये विषय मन के द्वारा होते है मन को मुखिया माना जाता है चाहे तो इसी मन के द्वारा बहुत अच्छे-अच्छे कार्य किये जा सकते है धर्म व पुण्य के कार्य कर सकते है और चाहे तो इसी मन के द्वारा बुरी संगति में फंस सकते है दुर्व्यसनो के शिकारी हो सकते है।
आचार्य श्री ने कहा कि पॉचों इन्द्रियो का नायक ये मन है वैसे तो सभी इन्द्रियॉ अपना-अपना काम अलग-अलग करती है लेकिन मेन स्विच तो मन ही है उसे खाली कभी मत छोड़ो उसे एक न काम में लगाये रहो विषय वासनाओ से, कषायो से अपने मन को हटाओ बुरी संगतियो में फंसकर अपना जीवन बर्बाद मत करो क्योंकि हमारे अनादि काल के ऐसे ही संस्कार है कि हम अच्छी बातो को जल्दी ग्रहण नहीं कर पाते लेकिन बुरी आदते जल्दी आ जाती है हमें इन बुराईयो से अपने मन को हटाना है। यदि अपने जीवन को बदलना है तो मन को धर्म में लगाना ही होगा जिस दिशा में हमारा मन जाता है उस दिशा से मन को हटा दीजिये ओर जिस दिशा में नहीे जाता है उस दिशा में अपने को लगा लीजिये अर्थात् अपनी आत्मा की ओर मन ले जाईये ये ही सच्चा सुख शांति का खजाना है।
आचार्य श्री ने कहा कि यदि मन को सही दिशा में ले जाना है तो स्वाध्याय करना प्रारंभ कर दो हम मंदिर जाते हे, पूजा करते है, माला फेरते है लेकिन मन हमारा माला फेरने में, पूजा करने में नहीं लगता आप न की दिशा को चेंज कर दो खाली मन शैतान का घर होता है माला में मन को लगाओ तभी आपका माला फेरना सार्थक होगा मन कहता है तभी हमारी इन्द्रियॉ कार्य करती है इसलिये आज का मनुष्य इन्द्रियो का गुलाम बना हुआ है एक मात्र निर्ग्रन्थ संत ही है जो अपने अनुसार मन को चलाते है सदैव धर्म ध्यान में अपना मन लगाये रहते है ताकि वह गलत दिशा में न जा सके जो व्यक्ति अपने मन को वश में कर लेता है समझो उसने पॉचो इन्द्रियो में विजय कर ली आज तक जितने भी महापुरूष हुये उन्होने इसी मन को जीतने को सबसे बड़ा पुरूषार्थ किया हो।
अतः हम सभी अपने जीवन में ऐसा सम्यक् पुरूषार्थ करे और अपने जीवन को बदलने का प्रयास करे क्योंकि जीवन को बदला ही सच्ची साधना है। ये संत हमें सिखाने नहीं जगाने नहीं आये है हमारे मन को सही दिशा बोध देने आये है अतः हम सभी इन गुरूओ की वाणी को अपने आचरण में उतारने का प्रयास करे और अपने जीवन सुखी बनाये तभी हमारी आत्मा पावन वन पायेगी।

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