सोनागिर। हमें जीवन में परिवर्तन लाना है तो धर्म का सहारा लेना पड़ेगा। यदि श्रद्धा जाग गई होती तो हमारे जीवन में परिवर्तन हो जाता। समर्पण भी होना जरूरी है जिस व्यक्ति के अंदर धर्म होगा तो नैतिकता भी होगी। हम आदमी कैसे बनेंगे जब तक हमारे जीवन में धर्म नहीं आएगा। दूसरा व्यक्ति पीडित है और आपके अंदर यदि करुणा नहीं है तो आपका सब व्यर्थ है। कल्याण तभी होगा जब सभी जीवों के प्रति करुणा के भाव रहे। अपनों के प्रति करुणा के भाव नहीं रहते हैं आज यह विचार क्रांतिकारी मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने गुरुवार को सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सागर सभागृह में धर्मसभा कप संबोधित करते हुए कही!
मुनिश्री ने कहा कि तपस्या, धर्म आराधना की साधना के बिना मानव का मोक्ष नहीं हो सकता। यदि प्रभु भक्ति से जुडना है तो काया को मुद्रा में लाना होगा, तभी प्रभु के आनंद की अनुभूति हो सकेगी। जीवन को धर्म के लिए जीना चाहिए। समय जीवन मे सबसे बहुमूल्य है सूरज की तरह चमकना चाहते हो तो उसकी तरह तपना भी सीखना होगा।
मुनिश्री ने कहा आज की युवा पीढ़ी धर्म संस्कार से दूर होती जा रही है, क्योंकि सभी लोग मोबाइल और टीवी में इतने व्यस्त रहते हैं कि अपने परिवार के साथ धर्म संस्कारों को अपने जीवन में आत्मसात करना ही भूल गए हैं। मोबाइल और टीवी में व्यस्त होने से ना तो परिवार के संस्कारों को ग्रहण कर रहे हैं और ना ही अपने धर्म के बारे में जान रहे हैं!
मुनिश्री ने कहा कि लोगों की धारणा बनी हुई है कि वे यदि सत्य का पालन करेंगे तो उनका सारा काम बिगड़ जाएगा। व्यापार में, नौकरी में, समाज में सभी जगह बहुत कठिनाई आ जाएगी। यह मन की दुर्बलता है। झूठा व्यक्ति ही सदैव भयभीत रहता है, न मालूम कब उसके झूठ का भेद खुल जाए। सत्य के बिना अभय नहीं होता है। सत्यनिष्ठ निर्भीक और निर्भय होता है। सत्य सदैव विजय होता है। उन्होंने कहा कि जीवन का शाश्वत सुख प्राप्त करना है, तो मन, वचन, कार्य से सत्य आचरण को अपने जीवन में प्रतिष्ठित करने की जरूरत है।