इंदौर। मध्यप्रदेश के इंदौर में शेयर कारोबार में लोगों को निवेश के नाम पर झांसा देकर ठगी करने वाली एक एडवाइजरी कंपनी पर स्पेशल टॉस्क फोर्स (एसटीएफ) की टीम ने दबिश दी है। कंपनी के दफ्तर पर हुई इस दबिश में 14 महिलाओं और 33 पुरुष कर्मचारियों को हिरासत में लिया गया है। सभी पर आरोप है कि ये फर्जी नामों से कम्प्यूटर की इंटरनेट कॉलिंग के जरिए लोगों को निवेश के लिए संपर्क कर उनके साथ धोखाधडी कर रहे थे। उक्त कंपनी के संचालक द्वारा सेबी के एडवाइजरी एक्ट का भी उल्ल्घंन किया जा रहा था।

एसटीएफ एसपी पद्म विलोचन शुक्ल ने बताया कि मालवा मिल चौराहे के पास मेहता मेंशन में संचालित की जा रही रेपिड रिसर्च टेक्नोलॉजीस एडवाईजरी कम्पनी पर दबिश दी गई थी। यहां से टीम ने प्रोपराइटर अरुण (35) पिता श्याम खंडेलवाल निवासी दूध तलाई (उज्जैन) को हिरासत में लिया है। ये इंदौर में नंदानगर में रहकर ही उक्त कंपनी का संचालन विनोद विश्वकर्मा और जितेंद्र सराठे के द्वारा करवा रहे थे। कंपनी में दबिश के दौरान टीम ने यहां से आरोपी जितेंद्र सराठे के साथ कंपनी के एरिया रिलेशनशिप मैनेजर, आईटी हेड, एच आर मैनेजर, टीम लीडर, फ्लोर कर्मचारी व रिसर्चर अजय जायसवाल सहित कुल 47 लोगों को कस्टडी में लिया है। सभी फर्जी नामों से कालिंग कर लोगों को शेयर में निवेश करने के नाम पर धोखाधडी करते थे। 47 कर्मचारियों में 14 महिला एवं 33 पुरुष हैं जो अपने नाम बदलकर लुभावने रिर्टन्स एवं डीमेट अकांउट का झांसा देकर लोगों से कंपनी के खाते में राशि जमा करा उन्हें दोगुने, तिगुने से ज्यादा मुनाफे का लालच देते थे।
उक्त कंपनी के कर्मचारियों द्वारा सेबी के एडवाईजरी नियम 2013 के प्रावधानों के तहत जानकारी ली तो पता चला प्रोपराइटर अरुण खण्डेलवाल के पास एडवाइजरी कंपनी संचालित करने के लिए जरूरी एनआयएसएम का सर्टिफिकेशन लिया था। इसी सर्टिफिकेशन की आड़ में 12वीं और ग्रेजुएट लोगों को बतौर कर्मचारी नियुक्त कर उन्हें धोखाधडी के लिए ट्रेन कर उनसे काम लिया जा रहा था। अरुण खण्डेलवाल अपने लाइसेंस पर ये कंपनी विनोद विश्वकर्मा और जितेन्द्र सराठे को चलाने के लिए दे दी थी। वहीं सर्टिफिकेशन के एवज में एक निश्चित राशि हर माह लेता था। कंपनी से टीम ने 48 कम्प्यूटर, हेडफोन और 46 मोबाइल फोन जब्त किए हैं।
कार्रवाई के दौरान मैनेजर विनोद विश्वकर्मा निवासी नंदानगर फरार हो गया, जिसकी तलाश की जा रही है। हिरासत में लिए 8 आरोपी सिर्फ एमबीए तक पढ़े हैं, जिनके पास भी सेबी के नियमानुसार एनआयएसएम का सर्टिफिकेशन नहीं है। वहीं शेष अधिकांश कर्मचारी 12वीं और बीएससी, बीकॉम, बीबीए, बीए, इंजीनियरिंग एमकॉम, एमए, आईटीआई तक पडे हैं।

सुनिल नायक पिता दौलतराम नायक, सुरेन्द्र पिता रामायण शुक्ला, राजू कुमार पिता धनीराम जाटव, अनवर कुरैशी पिता जब्बार कुरैशी, आकाश पिता चन्दन सिंह परिहार, सोनू पिता संजय गोयल, सुहैल पिता उमर खान, रूपेश पिता सुनील सोनी, वैशाली पिता धैर्यपाल सिंह, नितेश पिता नसीब यादव, सत्या पिता अभय यादव, उदय पिता मनोहर पंवार, मुकेश पिता बलराम पंवार, मयूरी पिता अमरदीप चौहान, राधिका पिता नंदकिशोर शर्मा, रीना पिता देवीसिंह मालवीय, जय पिता मुकेश गुप्ता, शुभम् पिता गंगाराम कुमावत, मेघा पिता प्रकाश चित्ते, राजल पिता शंभूलाल डांगी, श्वेता पिता शंभूलाल डांगी, संदीप पिता श्रीकृष्ण सिंह, मनोज पिता मान सिंह जाटव, ममता पिता हुकुमचंद प्रजापति, कंवरपाल पिता जसवंत जाटव, धापू पिता खुमान सिंह, अजहर पिता जलालउद्दीन, रजनी पिता हीरालाल, रंजीत पिता रामभगत सिंह बैस, मयंक पिता सियाराम शर्मा, सुष्मिता पिता अशोक परमार, संदीप पिता मनक सिंह सोलंकी, शुभम पिता प्रकाश कुमरावत, कृष्णा पिता हेमराज बारासकर, अरशद पिता अयुब खान, अभिषेक पिता अशोक गांवडे, मनीष पिता कृष्ण कुमार गुप्ता, शुभम पिता बाबू राव खंडागरे, रश्मि पिता सुभाष दिवाकर, कंवलजीत पिता जागीर नाथ देशमुख, सौरभ पिता जगदीश प्रसाद पाण्डे, अमन पिता दीपक खंडेलवाल, मोनी पिता राजेश शर्मा, हारुण पिता इशराक खान, आकाश पिता ताराचंद यादव, विपुल पिता सुनील पालीवाल, अरुण पिता श्याम खंडेलवाल, जितेन्द्र पिता सरताज सराठे।

एसपी शुक्ला ने बताया कि सेबी द्वारा 100 से अधिक एडवाईजरी कम्पनियों की सूची उन्हें दी गई थी। इनमें से अधिकांश कंपनियां सेबी के नियमों के विपरीत जाकर काम कर रही थी। इसी को लेकर एसटीएफ की ये बडी कार्रवाई है। जांच में पता चला है कि सेबी से रजिस्टर्ड एडवाईजरी कम्पनियों में काम करने वाले कर्मचारियों द्वारा ही कंपनी में होने वाली आकर्षक आय को देखकर कम समय में ज्यादा रुपया कमाने के लिए फर्जी नाम से एडवाईजरी कम्पनियां बनाई जा रही हैं। पूरे देश में इस तरह की कई फर्जी कंपनियां हैं जो लगभग 2 करोड से ज्यादा की धोखाधडी निवेशकों को झांसे में लेकर कर चुकी हैं।

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