भोपाल। प्रदेश में जिले का माइनिंग प्लान जारी करने के मामले में राज्य शासन ने कलेक्टरों के अधिकार में कटौती की है। कलेक्टरों से कहा गया है कि वे माइनिंग प्लान सीधे जारी नहीं कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें जिले में पदस्थ जियोलॉजिस्ट या संचालक से परमिशन लेना होगी। इसके बाद ही प्लान मंजूर माना जा सकेगा और उस पर अमल की कार्यवाही की जा सकेगी। उधर, दो अलग-अलग अन्य आदेशों में शासन ने एक करोड़ रुपए से अधिक के बकायादार ठेकेदारों की जानकारी कलेक्टरों से मांगी है और अवैध उत्खनन के केस कलेक्टर कोर्ट में पेंडिंग रहने पर राजस्व क्षति बताते हुए उसके त्वरित निराकरण के लिए निर्देशित किया है। खनिज साधन विभाग द्वारा इसको लेकर नए निर्देश जारी किए गए हैं।

मध्यप्रदेश रेत (खनन, परिवहन, भंडारण) नियम 2019 में किए गए संशोधन में इसके प्रावधान किए गए हैं। इसमें कहा गया है कि कलेक्टर खनन योजना का अनुमोदन जिले में पदस्थ तकनीकी योग्यता वाले (भू विज्ञान अनुप्रयुक्त भू विज्ञान विषय में स्नातकोत्तर उपाधिकारी) विभागीय अधिकारी की अनुशंसा पर ही करेंगे। अगर जिले में इस योग्यता वाले अधिकारी पदस्थ नहीं हैं तो खनन योजना का अनुमोदन कराने के लिए कलेक्टर को क्षेत्रीय प्रमुख या संचालक को प्रस्ताव भेजा जाएगा। इसके बाद ही जिले का माइनिंग प्लान जारी किया जा सकेगा।

एक अन्य आदेश में खनिज साधन विभाग ने कहा है कि प्रदेश में जिन्हें माइनिंग के लिए पट्टे पर जमीन दी गई है, उनके हर छह माह में कर निर्धारण किए जाने हैं। इसलिए सभी खदानों का कर निर्धारण कलेक्टर अभियान चलाकर पूरा करा कराएं। इसमें बंद खदानों को भी शामिल किया जाएगा। टैक्स निर्धारण के बाद जिन मामलों में एक करोड़ रुपए से अधिक की राशि बकाया निकलती है, उनकी सूची अलग और इससे कम बकाया की सूची अलग से भेजी जाए ताकि टैक्स वसूली के मामले में राज्य शासन फैसला ले सके।

खनिज साधन विभाग ने एक अन्य सर्कुलर कलेक्टरों को जारी करके कहा है कि भू राजस्व संहिता 1858 के अंतर्गत अवैध उत्खनन के केस दर्ज होने के बाद निराकृत किए जाते हैं। शासन की जानकारी में आया है कि कलेक्टर और एसडीओ रेवेन्यू के कोर्ट में हजारों केस पेंडिंग हैं। इससे सरकार का राजस्व प्रभावित हो रहा है। इसलिए कलेक्टरों को ऐसे मामलों में त्वरित एक्शन करने के लिए कहा गया है ताकि राजस्व बढ़े और अवैध उत्खनन करने वाले हतोत्साहित हो सकें।

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