ग्वालियर। ज्ञान की आराधना करने वाले के पास धन खुद चल आता है। ज्ञान से बढ़कर कुछ नही होता। दूसरे के ज्ञान पर उत्साहित ना हो, क्योंकि संसार में अपना ज्ञान अपने काम आता है। दूसरों का नही आता। यह विचार जैन राष्ट्रसंत मुनिश्री विहर्ष सागर ने आज लोहामंडी स्थित लाला गोकुलचंद जैसवाल दिगंबर जैन मंदिर में मंगल प्रवेश के दौरान धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। मंच पर मुनिश्री विजयेष सागर महाराज एवं क्षुल्लक श्री विश्वोत्तर सागर महाराज भी मौजूद थे। प्रवचनो से पहले आज मुनिश्री का मंगल प्रवेश उप ग्वालियर लोहमंडी जैन मंदिर में हुआ। जैन समाज के लोगो ने आरती उतारकर आगवानी की।
मुनिश्री ने कहा कि ज्ञान की जानकारी और बुद्धि तीनों अलग-अलग चीज है। ज्ञान और जानकारी की चोरी हो सकती है, जबकि बुद्धि की नहीं होती। ज्ञानी व्यक्ति हमेशा लड़ाई-झगड़े से दूर रहता है। सूखी दाल पीसने पर आवाज आती है, लेकिन गीली दाल पीसने का आवाज नहीं आती। हमारी आत्मा भी ज्ञान से गीली हो, तो लड़ाई-झगड़े नही होते है। ज्ञानी जहां भी रहेंगे, वहां झगड़े नहीं होगें, चाहे वह घर, मोहल्ला अथवा देश ही क्यों न हो। मुनिश्री ने कहा ंकि धन याने लक्ष्मी को भी वहीं संभाल सकता है, जिसके पास बुद्धि होती है। पत्नी को श्रीमती और पति को श्रीमान कहते है। श्री में लक्ष्मी का और मति बुद्धि का रूप है, जबकि श्रीमान में धन के साथ सम्मान जुडा है। लक्ष्मी खडी रहती है। जबकि ज्ञान और बुद्धि बैठे मिलते है। इस मौके पर मन्दिर कमेटी के अध्यक्ष पदमचंद जैन, मंत्री देवेद्र जैन, नवरंग जैन, दिलीप जैन, राहुल जैन, अभिलाश जैन, रविन्द्र जैन, विमल जैन, मनीश जैन, आलोक जैन एवं प्रवक्ता सचिन विषेश रूप से उपस्थित थे।

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