ग्वालियर। मध्यप्रदेश के चंबल संभाग के भिण्ड जिले के लहार के रावतपुराधाम आधुनिक युग तुलसी राष्ट्रीय संत और भारत के मानस मर्मज्ञ श्री मुरारीबापू व्यासपीठ पर अनन्त विभूषित पूज्य महाराज श्री रविशंकर जी (रावतपुरा सरकार) कर्मयोगेश्वर के साथ पहुंचे। इस अवसर पर वेद शिक्षा ग्रहण कर रहे शिक्षार्थियों ने शंख, घण्टे, घडियाल बजाकर पूज्य बापू का स्वागत किया। रामकथा की शुरूआत वेदपाठ आ नो भद्राः क्रतवो के साथ हुई। अनन्त विभूषित पूज्य महाराज श्री रविशंकर जी (रावतपुरा सरकार) कर्मयोगेश्वर ने रामकथा को आम भक्तों के बीच बैठकर सुना संतश्री मुरारी बापू ने रामकथा की शुरूआत सियाराम, सियाराम, सियाराम, सिय, सिय श्रीराम के साथ करी। इसके बाद उन्होंने हनुमान चालीसा का संगीतमय पाठ किया। उन्होंने कहा कि इस पावन रावतपुरा हनुमान जी के चरणों में प्रणाम करते हुए पवन तनय हनुमान के साथ इस स्थान के परमपूज्यनीय रविशंकर जी रावतपुरा सरकार के चरणों में प्रणाम करता हूं। यहां उपस्थित सभी पूज्य संत विद्वानगण और भक्तगणों को व्यासपीठ से मेरा प्रणाम जय श्रीराम।
उन्होंने व्यासपीठ से उपस्थित भक्तगणों को कहा कि मैं पवन तनय पवनपुत्र को केन्द्र में रखते हुए सद्गुरू सद्जन्म की कृपा से कुछ स्वातिक-स्वातिक बात करूंगा। मैं पहले आप सभी को अपना समझकर अपनी बात करना चाहता हूं कि मेरी समग्र यात्रा गुजरात के माण्डवी से शुरू होती है। मेरी लोक से शुरू होकर श्लोक तक जाने की विनम्र कोशिश है आप जिसको मुरारी बापू कहते हैं वह गारगी और मारगी के बीच में बहता है। हम वेद की शुरूआत पवन तनय से करते हैं। ऋषियों और संतों का सानिध्य परमानन्द होता है बडों के पास बैठने से शील की प्राप्ति होती है। ज्ञान जहां हो वहां जाना चाहिए। उन्होंने उदाहारण देते हुए कहा जब हम शॉपिंग कॉम्लेक्स में सामान लेने जाते हैं तो उसकी जाति पूछते हैं क्या ? हमें तो अच्छा सामान चाहिए।

अग्नि में जल डालने से जो पुरूष पैदा होता है उसका जबाव रामचरित मानस देता है जल की आहूति से अग्नि शांत होती है। राजा दशरथ ने जो पुत्र कामना के लिए कामना यज्ञ किया। वह भी जल आहूति थी। यही उन्होंने रामचरित मानस की चौपाई भये प्रगट कृपाला दीनदयाला…….उन्होंने कहा भगवान श्रीराम पूर्ण पुरूषोत्तम है हर छंद का संग्रह रामचरित मानस में है। गावद सम्पद शम्भू भवानी इस मंत्र में हनुमन्त परिचय वेदों के शब्दकोष ले लो हनुमन्त परिचय मिलेगा। पवन तनय अग्नि है निरन्तर राम नाम जपते हैं नाम पावक है भगवान का रूप है और पाप भी भगवान का रूप देखकर भस्म हो जाये। सबसे पहले वेद, यजवेद, हनुमन्त शरण से शुरू होता है वेद देव वाणी है। हनुमान जी अग्नि विग्रह हैं।

तेरा जाना दिल के अरमानों का लुट जाना कोई देखे बनके तकदीरों का मिट जाना की संगीतमयी प्रस्तुति दे संत श्री मुरारीबापू ने उपस्थित करीब दस हजार भक्तगणों की तालियां बटोरी सभी भक्तगण इस गीत पर मंत्रमुग्ध हो गये। उन्होंने इस अवसर पर उपस्थित भक्तगणों से कहा थोडी देर के लिए हम वृन्दावन धाम चलते हैं श्रीराधे जयराधे, राधे-राधे, श्रीराधे भजन श्रोताओं के बीच रखा। उन्होंने कहा महाभारत का भीषण युद्ध समाप्त हुआ। महाभारत युद्ध का अंतिम दिन चल रहा था। अर्जुन के सारथी श्रीकृष्ण थे। जैसे ही अर्जुन का बाण छूटता कर्ण का रथ कोसों दूर चला जाता। जब कर्ण का बाण छूटता तो अर्जुन का रथ सात कदम पीछे चला जाता। श्रीकृष्ण ने अर्जुन के शौर्य की प्रशंसा के स्थान पर कर्ण के लिए हर बार कहा कि कितना वीर है यह कर्ण जो हमारे रथ को सात कदम पीछे धकेल देता है।
अर्जुन बड़े परेशान हुए। कृष्ण से वह पूछ बैठे हे वासुदेव! यह पक्षपात क्यों मेरे पराक्रम की आप प्रशंसा नहीं करते एवं मात्र सात कदम पीछे धकेल देने वाले कर्ण को बारंबार वाहवाही देते हैं। श्रीकृष्ण बोले अर्जुन तुम जानते नहीं। तुम्हारे रथ पर महावीर हनुमान एवं स्वयं मैं वासुदेव कृष्ण विराजमान हूं। यदि हम दोनों न होते तो तुम्हारे रथ का अभी अस्तित्व भी नहीं होता। इस रथ को सात कदम भी पीछे हटा देना कर्ण के महाबली होने का परिचायक है। यह सुनकर अर्जुन को ग्लानि हुई। प्रत्येक दिन अर्जुन जब युद्ध से लौटते तो श्रीकृष्ण पहले उतरते फिर सारथी धर्म के नाते अर्जुन को उतारते। अंतिम दिन कृष्ण बोले अर्जुन! तुम पहले उतरो रथ से और थोड़ी दूरी तक जाओ। भगवान के उतरते ही घोड़ा सहित रथ भष्म हो गया। अर्जुन आश्चर्यचकित थे। यहीं उन्होंने भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा को भक्तगणों के बीच रखते हुए कहा कि मैं गंगा पुत्र भीष्म आज पूरी पाण्डव सेना को नष्ट कर दूंगा यह प्रतिज्ञा सुनकर धरती हिलने लगी थी और कृष्ण की प्रतिज्ञा थी कि मैं हथियार नहीं उठाऊंगा। भीष्म पितामह के तीरों से पाण्डव सेना में त्राही-त्राही हो गई थी। इस पर श्रीकृष्ण रथ का पहिया लेकर भीष्मपितामह की ओर अपना विराट रूप लेकर बढे तब भीष्मपितामह ने कहा था हे प्रभू यही रूप तो मैं देखना चाहता था।

रावतपुरा धाम व्यास पीठ से संतश्री मुरारी बापू ने रामचरित मानस कथा के दौरान पूरे हिन्दुस्तान की जनता से आव्हान किया कि हमें राष्ट्रधर्म के बारे में सोचना पडेगा। शांति ही इस राष्ट्र की पूंजी है उन्होंने देश के सामाजिक और राजनीतिक माहौल पर केन्द्रित होते हुए कहा कि समाज के हर वर्ग को अपने विभिन्न दायित्वों का अनुपालन पूरी निष्ठा के साथ करना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोक जीवन में राष्ट्र सर्वोपरि है और किसी भी कीमत पर अखण्डता, एकता और सदभाव को कमजोर नहीं किया जा सकता है। किसी के बहकावे में आकर कोई भी गलत काम न करें पहले अपने के बजाय राष्ट्र के बारे में सोचना पडेगा। गांधी जी का प्रमुख सिद्धांत था कि विनम्र बनने से ही मनुष्य महान बनता है। रामकथा एक स्वातिक और सिद्ध कथा है रामकथा मात्र धार्मिक कथा नहीं है रामकथा काम है मानवी को मानवी तक पहुंचाना। राम हमें एक होना सिखाते हैं। इस अवसर पर उन्होंने एक गीत जब नाश मनुष्य पर छाता है तो पहले विवेक मर जाता है। विश्व मंगल के लिए जो कई रूप धारण कर सकता है वह है देवता स्वार्थ और लिप्सा के लिए इन्द्र रूप बदलता है। हनुमान जी जगत मंगल के लिए रूप बदलते हैं। फिर उन्होंने इस अवसर पर उन्होंने महर्षि वशिष्ट, विश्वामित्र, और शेशनाग के संवाद को विस्तृत से भक्तगणों के बीच में कहा उन्होंने कहा कि सत्संग के कई रूप है तप से शरीर शुद्ध होता है और चित्र को उग्र करता है। सत्संग शरीर की शुद्धि न कर चरित्र की शुद्धि करता है।

उन्होंने भक्तगणों से कहा कि उम्र में दो चार बडी लडकी से शादी करनी चाहिए पर मेरी बात आप मानना नहीं कभी पत्नी की पैरों की सेवा करने का अवसर मिले तो मन में संतुष्टि होगी कि बडों की सेवा कर ली। फिर उन्होंने घर आया मेरा परदेशी गीत श्रद्धालुओं के बीच रखा। उन्होंने चम्पामणी और मुद्रिकामणी के बारे में भी विस्तृत रूप से अपने विचार रखे उन्होंने कहा मुद्रिका मणी भविष्य है और चम्पामणी ज्ञान है। उन्होंने अंत में कहा कि रामायण में से और कुछ न सीखें मात्र हॅसना सीखें तो भी बहुत है भगवान राम बोलते है उससे पहले हॅसते है हॅसे और फिर बोले यह राम का लक्षण हैं। रामकथा एक स्वातिक और सिद्ध कथा है रामकथा मात्र धार्मिक कथा नहीं है रामकथा काम है मानवी को मानवी तक पहुंचाना। राम हमें एक होना सिखाते हैं। सोलह रस से हनुमन्त पूर्ण होता है हनुमन्त तत्व के बिना विश्व का कोई व्यक्ति जी नहीं सकता है। हमारी दृष्टि में हनुमान कोई सीमित नहीं है।

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