होशंगाबाद ! जिले को जल्द से जल्द खुले मेें शौच से मुक्त कराने के लिए भले ही हाय तौबा मची हुई है, लेकिन कई ऐसे भी मामले सामने आ रहे है, जिनमें भारी धांधली उजागर हो रही है। ग्राम पंचायत बारंगी के गांव लखनपुर के रमेश कुशवाहा के घर शौचालय बना ही नहीं है, लेकिन रिकॉर्ड में उसके घर शौचालय होने की जानकारी दी जा रही है। जनसुनवाई में यह मामला समाने आया है। रमेश कुशवाहा के पुत्र प्रदीप ने जनसुनवाई में बताया कि मेरे पिता रमेश बीपीएम धारक है, गरीब है, भूमिहीन है, शौचालय भी नहीं है। जब सभी जगह शौचालय बन रहे है तो रमेश ने भी ग्राम पंचायत में जाकर सम्पर्क किया कि मुझे भी शौचालय निर्माण की सहायता प्रदान की जाये। सचिव व सरपंच द्वारा जबाव दिया गया कि ऑनलाइन पोर्टल पर तुम्हारे नाम का शौचालय निर्माण हो चुका हैं, अब तुम्हें शौचालय निर्माण की सुविधा नहीं मिलेगी। रमेश को समझ ही नहीं आ रहा है कि जब मेरे घर में शौचालय निर्माण हुआ ही नहीं है, तब ऑनलाइन पोर्टल पर किसने शौचालय बना कर राशि निकाल ली। उसने निवेदन किया है कि इसकी जांच करा कर हमें शौचालय व मकान निर्माण में सरकारी सहायता प्रदान की जाये। कुशवाहा ने बताया कि गांव में इस तरह के और भी मामले है। रमेश कुशवाहा के नाम से बने शौचालय की ऑनलाइन एन्ट्री के पीछे लापरवाही हो या जानबूझकर फायदा उठाने की नियत। परन्तु इस तरह अगर पंचायतें ओडीएफ होने का क्या औचित्य रह जाता है।
होशंगाबाद। विस्थापन में पुर्नवास की विसंगतियों के कारण लोगों को परेशानी का सामना करना आम बात हो गई है। विस्थापन के समय तो इन लोगों से सर्वसुविधा उपलब्ध कराने का वादा किया जाता है। परन्तु सही मायने में पुर्नवास हुआ है भी की नहीं, विस्थापन के बाद कोई नहीं देखता। ऐसा ही एक मामला सुखतवा के पास सांकई गांव का है। ये आदिवासी पुराने सांकई गांव में खुश थे, थोड़ी बहुत खेती जोतकर व मजदूरी करके जीवन यापन कर रहे थे। वनविभाग द्वारा इन्हें विस्थापित करके नये सांकई में लाकर बसा दिया गया। यहां ये आदिवासी परेशानियों से झूझ रहे है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इन्हें विस्थापित हुये 7-8 महिने हो गये है। विस्थापन के बाद इन्हें दूसरी जगह जमीन देने के लिये बताई गई थी। परन्तु जो जमीन बताई थी वह बेकार पड़ी है। अभी तक उसकी सफाई करके वितरित नहीं की गई है। जमीन की सफाई होकर नहीं मिलने से इनके पास आजीविका का संकट खड़ा हो गया है। दूसरा लगभग 25 परिवार ने नई सांकई में आकर टप्पर बना लिये है। परन्तु यहां पर बिजली, रोड, नाली स्कूल आदि सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई गई है। सांकई के आदिवासियों ने मंगलवार को जनसुनवाई में निवेदन करते हुये कहा है कि वनविभाग के अधिकारी हमारा कुछ नहीं कर रहे है ऐसे में हमारा क्या होगा, जब हम विस्थापित नहीं हुए थे तब वनविभाग के अधिकारी बोलते थे कि आपका पूरा ध्यान रखेगें। इसके बाद भी हम परेशान हो रहे है। अत: जमीन सफाई, समतलीय कर, वितरित करायें तथा अन्य सुविधा भी उपलब्ध करवाई जाये।