रतलाम। 26 अप्रैल को आईएनएस विक्रमादित्य में लगी आग बुझाने के दौरान लेफ्टिनेंट कमांडर धर्मेंद्रसिंह चौहान शहीद हो गए थे। घटना से 47 दिन पहले ही 10 मार्च को इनकी शादी हुई थी। शहीद चौहान की पत्नी करुणा आज भी सिंदूर, बिंदी व चूडी पहनकर रहती हैं। करुणा का मानना है- मेरे पति ने 1400 महिलाओं के सुहाग को जिंदा रखा। मैं उनकी पत्नी थी और हमेशा रहूंगी। शहीद की पत्नी करुणा सिंह की कहानी, उन्हीं की जुबानी।
‘मैं उस दिन परीक्षा में ड्यूटी दे रही थी। धर्मेंद्रजी और हम 30 दिन बाद साथ रहने वाले थे, बहुत उत्साहित थी, तभी नेवी से फोन आया कि आपके पति का एक्सीडेंट हुआ है, वो आईसीयू में है, आप आ जाइए। मैंने रास्ते से ही रतलाम में मां को फोन लगा दिया। वहां पहुंची तब तक उन्हें बचाया नहीं जा सका था। नेवी का अंत तक बहुत सपोर्ट रहा। मैं सौभाग्यशाली हूंॅ कि मेरे पति ने 1400 महिलाओं का सुहाग बचाया। मैं आज भी सिंदूर-बिंदी लगाती हूं। मैंने उनके लिए करवा चौथ का व्रत भी रखा। वे हमेशा मेरे साथ है।
वह कहती हैं- हमारा साथ बहुत छोटा रहा लेकिन फेरे लेते वक्त जीवन के साथ व उसके बाद का भी सोचा था। जब तक हम दोनों खत्म नहीं होते, ये रिश्ता कैसे खत्म हो सकता है। मेरा हक है कि मैं पति के नाम का सिंदूर लगाऊं। मुझे सामाजिक प्रणाली से फर्क नहीं पडता। मैं कॉलेज में बच्चों को पढाती हूं, उन्हें मोटिवेट करती हूं, उनमें से एक भी धर्मेंद्रजी जैसा बनेगा तो ये मेरा सौभाग्य है। आज भी मेरे पति मुझे देखते होंगे तो वे खुश होते होंगे। मैं उनकी पत्नी होने की सभी जिम्मेदारियां निभाऊंगी।’
शहीद की मां टमा कुंवर घर में अकेली ही रहती है। कभी वे सिसकती है, तो कभी बेटे को याद करती है। मां टमा कुंवर ने बताया ‘मेरा बेटा शेर है। बस बहुत जल्दी चला गया (रोते हुए)। ऐसे बेटे को जन्म देकर धन्य हूं। जो बच्चे 50 की उम्र में नहीं कर सकते वह 25 की उम्र में कर गया। रात में आज भी नींद नहीं आती है। दिनभर बेटे के साथ बिताए लम्हे याद आते हैं। शादी के बाद एल्बम बन गई लेकिन हम उसे घर नहीं लाए हैं। अब लाकर भी क्या करेंगे(रोने लगी)।’
रिद्धि सिद्धि कॉलोनी में शहीद धर्मेंद्रसिंह चौहान की प्रतिमा लगाने की तैयारी की जा रही है। इधर, शहीद की मां व पत्नी का कहना है कि वे शहीद की प्रतिमा नहीं लगवाना चाहते। ऐसा इसलिए क्योंकि भविष्य में उसकी देखरेख हो या नहीं। हम चाहते हैं कि प्रतिमा की जगह एक स्मारक बने, इस स्मारक पर शहीदी की दास्तां लिखी हो। रतलाम मेडिकल कॉलेज का नाम शहीद धर्मेंद्रसिंह चौहान के नाम पर रखा जाए।