भिण्ड। व्यक्ति के पुरूषार्थ किए बिना काललब्धि भी कुछ नही कर सकती,उसके लिए भी हमें पुरूषार्थ की ओर अग्रसर होना पडेगा। बिना बीज के किसी भी बगिया अथवा खेत में पौधा अंकुरित नही होता, उसके लिए भी किसान अथवा माली को पुरूषार्थ कला आवश्यक है। उक्त प्रवचन आचार्य विशुद्व सागर जी महाराज ने जैन नशिया प्रांगण में आयोजित पंच कल्याणक प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के गर्भ कल्याणक के अवसर पर दिए।

जैनाचार्य ने कहा कि यह बात सत्य है कि बिना काललब्धि के कार्यसिद्वि होती नही, लेकिन यह भी त्रैकालिक सत्य है कि बिना पुरूषार्थ के काल लब्धि आती नही। उन्होनें उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे किसी बगीचे का मालिक अथवा खेत का किसान मात्र अपने बगीचे अथवा खेत में मात्र जाकर लौट आए। उस मिट्टी में बीज ही न डाले और न ही उसमें कोई भी खाद-पानी दे,तथा अपने घर आकर बैठ जाए, कुछ समय पश्चात् वही किसान और माली अपने बगीचे और खेत में जाए तो क्या उन्हें फूल या फसल प्राप्त होगी। भले ही कार्तिंक माह बोई की सरसों की फसल चेत माह में आती हो जब किसान के द्वारा खेत में बीज बोया ही नही गया तो वह फसल क्या काटेगा। ऐसे ही समय के अनुसार काललब्धि तो आएगी लेकिन काटोगे वही जिसका तुमने पुरूषार्थ किया है।

जैनाचार्य ने कहा कि पाषाण से भगवान बनाने के लिए जो पंचकल्याणक होते है उसमें गर्भकल्याणक की महिमा का बहुत ही अलग से महिमा है। उन्होनें कहा कि जैन दर्शन ही ऐसा दर्शन है जिसमें गर्भ कल्याणक को आनंदमीय पर्व के साथ मनाया जाता है, क्योंकि जब तक बीज भूमि में नही डाला जाएगा, तब तक अंकुर उत्पन्न कहां से होगा। आचार्य ने कहा कि जब जीव का गर्भ ही नही होगा तो संतान कहा से जन्म लेगी। गर्भं का बीज अंकुरित होने पर ही भगवान बनने की पात्रता होती है। चाहे वह तीर्थंकर हो, राम-श्याम हो, नारायण अथवा रूद्र के इन सभी सभी महान आत्ममाओं ने जन्म लिया है और आत्म कल्याण कर मोक्ष परम सुख को पाया है यदि ये जन्म ही नही लेते तो हमें भगवान कहां से मिलते। उन्होनें कहा कि आज के समय में बहू-बेटी के राग में गर्भ में ही भविष्य के भावी भगवानों की मृत्यु हो रही है उन्हें बोझ समझा जा रहा है,जबकि हर व्यक्ति को यह बोध होना चाहिए कि माता के उदर में पलने वाला गर्भ जीव अपना स्वयं का भाग्य लेकर उत्पन्न होता है।

गर्भ की पूर्व की क्रियाओं के साथ माता ने देखे सोलह स्वप्न
भिण्ड। आचार्य विशुद्व सागर जी महाराज के सानिध्य एवं प्रतिष्ठाचार्या पं.जयकुमार निशांत के निर्देंशन में होने वाले पंचकल्याणक प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के क्रम में भगवान को गर्भ कल्याणक की पूर्व की क्रियाएं वैदिक मंत्रोच्चार के साथ विधि-विधान के साथ सम्पन्न हुई। गर्भ की पूर्व की क्रियाओं में गर्भ कल्याणक की पूजन इत्यादि मांगलिक कार्यक्रम किए गए,जिसमें बेदी शुद्वि तथा नवीन प्रतिष्ठता होने वाली प्रतिमाओं को मण्डप में विराजमान कराया गया। तत्पश्चात् माता मरूदेवी को गर्भ में तीर्थंकर आदिनाथ के आते ही सोलह स्वप्न दिखाई दिए तथा राजा नाभिराय द्वारा राज दरबार लगाकर नाटक मंचन के माध्यम से सोलह स्वप्न का अर्थ भी बताया।

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