भोपाल।  चुनाव लड़ने वाले कैंडिडेट्स के लिए परिवारवाद, पट्ठावाद और उम्र के क्राइटेरिया पर भाजपा में मंथन हो रहा है। नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव संचालन समितियों की बैठकों के जरिये भाजपा इसके लिए गाइडलाइन तय करने जा रही है। इसको लेकर संचालन समिति की पहली बैठक में पार्टी नेताओं के सुझाव लेने का काम किया जाएगा। साथ ही ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत से अधिक टिकट वितरण के लिए जिलों को ओबीसी वोटर बाहुल्य निकायों की सूची भी भेजी जा रही है और उनसे ओबीसी के जिताऊ कैंडिडेट्स के पैनल मांगे जा रहे हैं।

स्थानीय निकाय चुनाव को आम चुनाव की तर्ज पर लेकर भाजपा इस चुनाव के जरिये यह संदेश देना चाहती है कि 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी पूरी तरह तैयार है और जीत की राह भी तय है। इसी के चलते सोमवार को पहले नगरीय निकाय चुनाव संचालन समिति की बैठक प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा, चुनाव संचालन समिति के पदाधिकारी उमाशंकर गुप्ता समेत अन्य सदस्यों की मौजूदगी में हो रही है।

इस बैठक में अंतिम दौर में सीएम शिवराज सिंह चौहान भी शामिल हो सकते हैं। सूत्रों ने बताया कि पार्टी इस चुनाव में खासतौर पर नगरीय निकाय चुनाव के टिकट पर ज्यादा फोकस करेगी और गाइडलाइन तय करेगी कि टिकट वितरण का क्राइटेरिया क्या होगा? चूंकि भाजपा में विधायकों की उम्र, परिवारवाद के रूप में नेता-मंत्री पुत्रों-परिजनों को और पट्ठावाद के आधार पर टिकट वितरण का विरोध होता रहा है।

साथ ही केंद्र की गाइडलाइन में भी इसको लेकर कई बार राज्य को संदेश मिलता रहा है, इसलिए बैठक में इस पर चर्चा होना तय है कि पार्टी महापौर, नगरपालिका अध्यक्ष के टिकट वितरण में विधायकों को टिकट देगी या नहीं, विधायकों, मंत्रियों के परिजनों को टिकट दिए जाने, दो या अधिक चुनाव लड़ चुके नेताओं को टिकट देने या उम्र का बंधन तय करने की रणनीति में से किस मुद्दे पर ज्यादा फोकस करना है और कैसे जीत की राह आसान करनी है? चूंकि संगठनात्मक चुनाव में उम्र का क्राइटेरिया तय कर जिला अध्यक्षों के लिए 55 साल और मंडल अध्यक्षों के लिए 40 साल की लिमिट तय की गई थी, इसलिए उम्र का क्राइटेरिया तय कर युवाओं को अधिक से अधिक नेतृत्व का मौका देने पर पार्टी निर्णय ले सकती है। यही स्थिति बगैर दलीय आधार पर होने वाले पंचायत चुनाव के मामले में भी लागू की जा सकती है।

निकायों की रिपोर्ट पर तय होंगे OBC कैंडिंडेट
दूसरी ओर पार्टी ने यह साफ कर दिया है कि निकाय चुनाव में ओबीसी बाहुल्य वोटर संख्या वाले क्षेत्रों में ओबीसी कैंडिडेट को टिकट दिया जाएगा और पार्टी 27 फीसदी से अधिक ओबीसी को टिकट देगी। पिछले दिनों मंत्रियों, विधायकों, जिला प्रभारियों, जिला अध्यक्षों की अलग-अलग बैठकों में इस निर्णय से अवगत कराया जा चुका है। संगठन ने तय किया है कि सुप्रीम कोर्ट रिव्यू पिटीशन के बाद अगर पक्ष में निर्णय देता है तो भी और अगर कोर्ट का फैसला सरकार के पक्ष में नहीं आता है तो भी ओबीसी को 27 फीसदी से अधिक टिकट देंगे। इसी परिप्रेक्ष्य में जिला अध्यक्षों से कहा गया है कि संगठन जल्द ही ओबीसी बाहुल्य वोटर संख्या वाले निकायों की सूची जिला अध्यक्षों को भेजेगा। इसके बाद जहां ओबीसी वोटर अधिक हैं, वहां ओबीसी कैटेगरी के लिए जीतने वाले दावेदारों के नाम पैनल में भेजे जाना है ताकि संगठन उस पर निर्णय लेकर टिकट वितरित कर सके।

कल जिलों में जाएंगे प्रभारी मंत्री
निकाय चुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा की गई दौर की बैठकें शीर्ष स्तर पर हो चुकी हैं। पिछले दिनों सीएम हाउस में हुई बैठक में मंत्रियों से कहा गया था कि वे प्रभार के जिलों में जाएं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें करें। पार्टी को निकाय चुनाव में जीत हासिल करना है। इसमें कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए। सभी मंत्रियों को 17 मई को प्रभार के जिलों में जाने के लिए कहा गया है। इसके चलते अधिकांश मंत्री कल प्रभार के जिलों में पहुंचकर जिला, मंडल स्तर के पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें करेंगे और चुनावी रणनीति पर चर्चा करेंगे।

मंत्री, विधायकों के पुत्र तलाश रहे जमीन
विधानसभा चुनाव के पहले हो रहे नगर निगम के महापौर, नगरपालिका अध्यक्ष और जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में कई मंत्री, विधायक और पूर्व सांसद-विधायक अपने पुत्रों, परिजनों को टिकट दिलाना चाहते हैं। इसके लिए वे जिला प्रबंध समिति की बैठकों के जरिये इनके नाम के पैनल तैयार कराने की लाबिंग में भी जुट गए हैं। कुछ मंत्री और विधायक जो अभी 2023 का चुनाव लड़ना चाहते हैं, वे नगर निकाय व पंचायत चुनाव के जरिये अपनी संतानों की राजनीतिक भूमि तैयार करना चाहते हैं। इस कारण यह तय है कि भाजपा में टिकट वितरण आसान नहीं होगा। ऐसे में पार्टी के लिए टिकट वितरण का क्राइटेरिया तय करना संगठन की मजबूरी भी है ताकि उसके आधार पर कार्यकर्ताओं को मौका दिया जा सके और नेता, मंत्री पुत्रों से किनारा किया जा सके। इसके साथ ही संगठन और सरकार में पद पर काबिज नेताओं के लिए भी टिकट का क्राइटेरिया तय किया जा सकता है। भाजपा की कोशिश है कि सभी 98 नगरपालिका और 16 नगर निगम भाजपा के ही कब्जे में रहें। इसलिए टिकट वितरण में क्राइटेरिया तय कर रहे हैं।