भोपाल। नक्सलियों से लोहा लेने वाले हॉक फोर्स के 1200 से ज्यादा जवानों के जोखिम भत्ता तय नियमों से ज्यादा देने के मामले में एडीजी रेंक के एक अफसर को बचाने में पुलिस मुख्यालय जुट गया है। इस मामले का खुलासा होने के बाद भी अब तक जांच के आदेश नहीं दिए गए हैं, कि आखिर क्यो एडीजी ने अपनी मर्जी से आदेश जारी कर 1200 जवानों और अफसरों को नियमों से ज्यादा का भत्ता दिलाया। सूत्रों की मानी जाए तो अक्टूबर 2017 में तत्कालीन एडीजी नक्सल विरोधी अभियान ने यह आदेश जारी किए थे कि हॉक फोर्स के जवानों और अफसरों को सातवें वेतनमान के अनुसार जोखिम भत्ता दिया जाए।

 नियमानुसार वेतनमान का 70 फीसदी हिस्सा अलग से जोखिम भत्त के रूप में दिया जाता। एडीजी के इस आदेश के बाद यहां पर 7वें वेतनमान के अनुसार जोखिम भत्ता दिया जाने लगा। जबकि स्पेशल ब्रांच, एसटीएफ, एटीएस सहित अन्य जिन्हें जोखिम भत्ता मिल रहा था, उन्हें छठवें वेतनमान का 70 फीसदी हिस्सा अलग से बतौर जोखिम भत्ता के रूप में दिया जा रहा था।

बताया जाता है कि यह आदेश तत्कालीन एडीजी संजीव समी ने जारी किया था। जब यह गलती पकड़ में आई तब जाकर इस आदेश को निरस्त किया गया। तब तक जवान और अफसर लाखों रुपए जोखिम भत्ते के रूप में पा चुके थे। पुलिस मुख्यालय द्वारा एडीजी के इस आदेश को निरस्त करने के बाद भी जोखिम भत्ते के नाम पर दी जा चुकी राशि की वसूली करने का निर्णय लेने में एक साल का समय लगा दिया।

सूत्रों की मानी जाए तो एडीजी के इस आदेश के बाद हॉर्क फोर्स में जाने के लिए पुलिस जवानों और अफसरों में होड़ मच गई थी। यहां पर तय पद से ज्यादा लोग जाने के लिए प्रयास करने लगे थे। इसके पीछे यही माना जा रहा है कि यहां पर जोखिम भत्ते का लाभ लेने के लिए जवान और अफसर जाने में रुचि लेने लगे थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *