नई दिल्ली । रात में कई लोग अपने कमरे में तरह-तरह की रंगीन लाइटें जलाकर सोते हैं. इस कारण मार्केट में इन लाइटों की डिमांड काफी बढ़ गई है. अगर आप भी उन लोगों में से हैं, जो कमरे में लाइट जलाकर सोते हैं तो आपकी सेहत को काफी नुकसान हो सकता है.

दरअसल, कुछ समय पहले हुई स्टडी के मुताबिक, रात में आर्टिफिशिअल लाइट (artificial light) में सोने से शरीर पर नेगेटिव असर हो सकता है. यह स्टडी शिकागो में नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने की है. उन्होंने सोते समय विभिन्न प्रकार की रोशनियों से होने वाले जोखिम पर रिसर्च की है. रिसर्च में पाया एक रात भी कृत्रिम रोशनी में सोने से ग्लूकोज का लेवल बढ़ने लगता है. मेटबॉलिज्म बिगड़ने लगता है और हृदय रोग, डायबिटीज, मेटाबॉलिक सिंड्रोम का जोखिम बढ़ सकता है.
ऐसे हुई रिसर्च
स्टडी के मुताबिक, रात की नींद के दौरान आर्टिफिशिअल लाइट की रोशनी इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ा सकती है और नर्वस सिस्टम को अधिक एक्टिव कर सकती है. वैज्ञानिकों ने रिसर्च में कृत्रिम रोशनी और मेटाबॉलिक डिसऑर्डर के बीच संबंध बताया और यह साबित किया कि नींद पैटर्न से मेटाबॉलिज्म संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं. इस स्टडी में 20 लोगों को शामिल किया गया था. एक कमरे में कृत्रिम रोशनी और एक कमरे में धीमी रोशनी रखी गई. दोनों कमरों में 10-10 लोगों को 1-1 दिन सुलाया गया और फिर उनका आंकलन किया गया.
आंकलन करने पर पाया गया कि जो लोग रोशनी वाले कमरे में सोए थे उन लोगों के इंसुलिन प्रतिरोध में 15 प्रतिशत की कमी देखी गई थी, जबकि कम रोशनी वाले कमरे में सोने वाले लोगों के इंसुलिन प्रतिरोध में 4 प्रतिशत की कमी देखी गई थी.
वहीं इंसुलिन संवेदनशीलता की बात की जाए तो तेज रोशनी वाले कमरे में सोने वाले लोगों में 16 प्रतिशत की कमी और कम रोशनी में सोने वाले लोगों की इंसुलिन संवेदनशीलता में 3 प्रतिशत बढ़त देखी गई. वहीं कमरे की तेज रोशनी और कम रोशनी के बीच ब्लड शुगर लेवल में कोई अधिक अंतर नहीं पाया गया था. लेकिन कमरे की तेज रोशनी में सोने वाले लोगों की इंसुलिन के लेवल में वृद्धि देखी गई थी.
क्वालिटी वाली नींद पर होता है असर
इस रिसर्च के 1 हफ्ते बाद नींद की क्वालिटी के विश्लेषण से पता चला कि दोनों ग्रुपों के सोने के समय, नींद के समय में कोई अंतर नहीं था. प्रयोग के दौरान किए गए स्लीप मैक्रोस्ट्रक्चर के विश्लेषण से पता चला, कमरे की तेज रोशनी वाले लोगों की नींद की क्वालिटी, कम रोशनी वाले कमरे में सोने वाले लोगों की अपेक्षा कम थी.
रिसर्च से क्या साबित हुआ
इस रिसर्च से निष्कर्ष निकाला कि रात की नींद के दौरान आर्टिफिशिअल लाइट नर्वस सिस्टम को एक्टिव करके कार्डियोमेटाबॉलिक काम को बदल देता है. लेकिन इससे मेलाटोनिन के लेवल पर कोई अधिक प्रभाव नहीं पड़ता. हालिया रिसर्च का असर शहरी लोगों पर अधिक पड़ता है, क्योंकि वहां पर इनडोर और आउटडोर रोशनी में काफी वृद्धि हो रही है. ऐसे व्यक्ति अगर रात में सोते समय रोशनी कम करते हैं, तो उनकी नींद की क्वालिटी बढ़ सकती है और बेहतर नींद हो सकती है.