ग्वालियर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने व्यापम घोटाले के व्हिसलब्लोअर आशीष कुमार चतुर्वेदी और उनके परिवार के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले के संबंध में प्रदेश के प्रमुख सचिव (गृह), पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और अतिरिक्त महानिदेशक (शिकायत) सहित कई शीर्ष पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को नोटिस जारी किए हैं, साथ ही इस मामले में कोर्ट ने अधिकारियों को दो सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश भी दिया है।

एक रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने यह कार्रवाई आशीष चतुर्वेदी, उनके पिता ओम प्रकाश शर्मा और मां विनीता शर्मा की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता डीपी सिंह द्वारा दायर एक रिट याचिका (WP संख्या 6532/2025) के बाद की है। याचिका में उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर (अपराध संख्या 114/2025) को सत्ता के दुरुपयोग और गवाह के पेशी वारंट को निष्पादित करने की आड़ में गलत भावना से रची गई साजिश बताया।

व्यापमं से जुड़े कई मामलों में मुख्य गवाह चतुर्वेदी ने याचिका में बताया कि 29 मार्च 2025 को पुलिस उनके ग्वालियर स्थित आवास में जबरन घुसी और उन पर शारीरिक हमला किया। इसके बाद वह उन्हें थाने ले गई और पुलिस स्टेशन में इस तरह घुमाया जैसे कि वे कोई खूंखार अपराधी हों। इसके अलावा आशीष ने बताया कि राज्य सुरक्षा समिति द्वारा साल 2014 से पुलिस सुरक्षा प्राप्त एक संरक्षित मुखबिर होने के बावजूद उन्हें कथित तौर पर पीटा गया, अपमानित किया गया और ट्रॉमा सेंटर में जबरन कोई पदार्थ इंजेक्ट किया गया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें गंभीर स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां होने लगीं।

आशीष चतुर्वेदी द्वारा दायर इस याचिका में पुलिस अधिकारियों पर गंभीर प्रक्रियात्मक और नैतिक उल्लंघन के बारे में बताते हुए उनकी शिकायत की गई है, जिनमें झांसी रोड के एसएचओ, एक सब-इंस्पेक्टर (जो बाद में FIR में शिकायतकर्ता बन गया) और अन्य शामिल हैं। याचिका के अनुसार ये सभी पुलिसकर्मी कथित तौर पर उन वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशों के तहत काम कर रहे थे, जिन पर चतुर्वेदी ने पहले भ्रष्टाचार, जबरन वसूली और अन्य गैरकानूनी गतिविधियों चलाने का आरोप लगाया था।

चतुर्वेदी ने यह भी आरोप लगाया कि उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया, जिसमें कूल्हे में एक अज्ञात पदार्थ का इंजेक्शन लगाना शामिल है, जिससे बाद में दर्दनाक सूजन आ गई और चलने-फिरने में मुश्किल होने लगी। उन्होंने कहा कि इन सब कामों के जरिए उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया, जिसमें सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त मुखबिर के रूप में मिला निजता और सुरक्षा का अधिकार भी शामिल है।

चतुर्वेदी ने बताया कि खास बात यह है कि घटना के कुछ ही घंटों बाद FIR दर्ज की गई थी और सब-इंस्पेक्टर शर्मा ने कथित तौर पर सरकारी अस्पताल में नहीं बल्कि परिवार सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में इलाज कराया था, जहां के एक निदेशक खुद व्यापमं घोटाले में आरोपी हैं। चतुर्वेदी ऐसे ही कई मामलों में अभियोजन पक्ष के गवाह हैं। जिसके बाद याचिका में उन्होंने कहा कि इससे खुद ब खुद शिकायत की मिलीभगत और प्रतिशोधात्मक प्रकृति का पता चलता है।

याचिका में मेडिकल रिपोर्ट, सीसीटीवी फुटेज के लिए किए गए आवेदनों और पुलिस द्वारा छेड़छाड़ के आरोपों के बारे में बताया गया है, जो यह सुझाव देते हैं कि गिरफ्तारी और FIR मुखबिर को डराने और चुप कराने की एक सोचीसमझी साजिश का हिस्सा थे। चतुर्वेदी ने कहा कि मेरे परिवार के सदस्यों का नाम भी एफआईआर में दर्ज किया गया, जिससे पूरे परिवार को निशाना बनाने का दावा और भी मजबूत हो जाता है।