ग्वालियर | गेंडे वाली सड़क पर कृष्ण मंदिर पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा में सातवे दिन सुप्रसिद्ध भागवताचार्य पं. श्री घनश्याम शास्त्री महाराज ने कहा कि भगवान कृष्ण के सामान कोई सहनशील नही है। क्रोध हमेशा मनुष्य के लिए कष्टकारी होता है मनुष्य स्वंय को भगवान बनाने के बजाय प्रभु का दास बनने का प्रयास करें, क्योंकि भक्ति भाव देख कर जब प्रभु में वात्सल्य जागता है तो वे सब कुछ छोड़ कर अपने भक्तरूपी संतान के पास दौड़े चले आते हैं। गृहस्थ जीवन में मनुष्य तनाव में जीता है, जब कि संत सद्भाव में जीता है। यदि संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ। संतोष सबसे बड़ा धन है | 
शास्त्री जी ने बताया कि जीवन में कितनी भी विकट परिस्थिति क्यों न आ जाए मुनष्य को अपना धर्म व संस्कार नहीं छोड़ना चाहिए  जिसकी भगवान के चरणों मआगे कथावाचक पं.घनश्याम शास्त्री जी ने कथा के दौरान श्रीकृष्ण एवं सुदामा की मित्रता के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सुदामा के आने की खबर पाकर किस प्रकार श्रीकृष्ण दौड़ते हुए दरवाजे तक गए थे। “पानी परात को हाथ छूवो नाहीं, नैनन के जल से पग धोये।” श्र? कृष्ण ण अपने बाल सखा सुदामा की आवभगत में इतने विभोर हो गए के द्वारका के नाथ हाथ जोड़कर और अंग लिपटाकर जल भरे नेत्रों से सुदामा का हालचाल पूछने लगे। उन्होंने बताया कि इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मित्रता में कभी धन दौलत आड़े नहीं आती हैं कथा परीक्षित अशोक सुनीता देवी, माधव बाल निकेतन के चेयरमैन नूतन श्रीवास्तव, अध्यक्ष पवन भटनागर विजलक्ष्मी भटनागर  सीमा सक्सेना तोषी भटनागर रुचि गुप्ता हरिओम शर्मा ने भागवत पुराण की आरती की ।