इंदौर ! मध्यप्रदेश में भगवान खुद भी दबंगों की कैद में रहने को मजबूर है। उसे अपने ही बनाये लोगों से दूर रखा जा रहा है. यहाँ मन्दिरों में दलित वर्ग के लोगों को पूजा तो दूर, घुसने तक की इजाज़त तक नहीं है। बात सि$र्फ मंदिरों की ही नहीं है। पीने का पानी हो या गांव की होटलों में खाने-पीने का मामला हो, आजादी के 65 साल बाद आज भी हर जगह छुआछूत जारी है।
प्रकरण -1 देश को संविधान देने वाले डॉ आम्बेडकर की जन्मस्थली महू के पास सीतापाट गाँव में कुछ दिनों पहले शंकर मंदिर में दलित युवक को जलाभिषेक से रोका ही नहीं, विरोध बढऩे पर गांव के दबंगों ने दलितों का पीने का पानी, किराना दुकान से राशन और गांव में हुक्का-पानी तक बंद कर दिया। संभागायुक्त- इंदौर ने कार्रवाई की तब कहीं जाकर पानी और राशन शुरू हो सका।
प्रकरण -2 महानगर इंदौर के छावनी इलाके के एक मन्दिर में प्रवेश करने से दीपक वर्मा नाम के दलित युवक को पुजारी पाराशर ने रोक दिया और कहा कि शूद्रों के छूने से प्रतिमा निश्चेतन हो जाती है। दीपक ने इसकी शिकायत भी की लेकिन कुछ नहीं हुआ।
प्रकरण -3 खंडवा जिले में पंधाना के पास कुंडिया गाँव में 26 मार्च 2015 को भागवत कथा समापन के भंडारे में दलित युवक सत्यप्रकाश को भोजन परोसने से रोक दिया। इस कार्यक्रम के सवर्ण आयोजकों ने उससे कहा, कि तुम झाड़ू लगाओ, पत्तल उठाओ, लेकिन भोजन-पानी नहीं परोस सकते। पुलिस को शिकायत हुई है।
प्रकरण -4 देवास जिले के चांसिया गांव में दलितों को पानी देने की सजा के तौर पर एक सामान्य जाति के परिवार पर ऊंची जाति के लोगों ने 20 हजार रूपये का जुर्माना ठोंक दिया। जुर्माना नहीं भरने तक उनका भी हुक्का पानी बंद कर दिया गया।
प्रकरण-5 मंदसौर जिले के भिल्याखेड़ी गांव में रामू काका जैसे बुजुर्ग इस आस में अपनी जिंदगी की आ$िखरी साँसे गिन रहे हैं, मरने से पहले एक बार गांव के मुख्य राम मंदिर में दर्शन हो जायें। करीब 7 सौ की आबादी वाले इस गाँव के राम मंदिर में आज तक कोई दलित प्रवेश नहीं कर सका है। गांव के भंवर लाल ने एक बार कुछ साल पहले जब ऐसी कोशिश की, तो उसके साथ दबंगों ने जमकर मारपीट की।
प्रकरण -6 इसी गाँव के स्कूल में बच्चों के साथ भी छुआछूत का बर्ताव किया जा रहा है। यहाँ दलित बच्चों के लिए खाने के बर्तन अलग हैं। उन्हें स्कूल के उस मटके से पानी नहीं लेने दिया जाता, जिससे बाकी बच्चे पानी पीते हैं।
प्रकरण-7 नीमच जिले के पिपल्या राव गाँव में भी दलितों को गाँव के मुख्य मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है।
अभी कुछ ही दिन पहले शिवपुरी में जाटव महिला के उप सरपंच बन जाने पर उसे गोबर खिलाये जाने और कई जगह दलितों की निर्मम हत्या के मामले भी सामने आ चुके हैं। मध्यप्रदेश के अजा-अजजा वर्ग कल्याण थानों में हर साल करीब 20 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किये जाते हैं, तो कई मामलों में शिकायत ही दर्ज नहीं हो पाती है। मालवा-निमाड़ इलाके के ये मामले तो बानगी भर हैं, पूरे प्रदेश में दलित अत्याचार की सैकड़ों कहानियां गांव-गांव बिखरी पड़ी हैं। हकीकत यह है, कि दलित वर्ग के लोग-खासतौर से गांव में रहने वाले, सामाजिक उत्पीडऩ के कारण अब भी घुट-घुट कर जीने को मजबूर हैं।
इनका कहना है
ऐसी घटनाएं निंदनीय हैं। यह सामाजिक समरसता को तोडऩे का कुचक्र है। इन्हें रोका जाए इसके लिए सामाजिक सोच को बदलने के साथ ही सख्ती की जरूरत है, सरकार इस दिशा में पूरी तरह सजग है।
ज्ञान सिंह, मंत्री
अनुसूचित जाति, जनजाति कल्याण
मप्र शासन
पूरे प्रदेश में दलितों के प्रति सवर्ण समाज का नजरिया बहुत दकियानूसी है, वे संविधान तक के कानून-कायदों को ताक पर रख कर छुआछूत कर रहे हैं। यदि हालात नहीं बदले तो कई जगह वर्ग संघर्ष की नौबत आ सकती है। पुलिस और प्रशासन भी गंभीर नहीं हैं।

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