ग्वालियर।मनुष्य दिनभर इस नश्वर काया को संवारने में लगे हैं, लेकिन यह काया आपका साथ नहीं देगी। यह काया किराए के मकान के समान समझना चाहिए। आज लोगों में मोह रूपी नशा चढ़ा हुआ है। संसार का सबसे बड़ा पराक्रम संसार का त्याग करना है। अहंकार विनाश का सूचक है। उक्त उद्गार जैन राष्ट्रसंत मुनिश्री विहर्श सागर महाराज ने आज फूलबाग स्थित गोपाचल पर्वत दिगंबर जैन मदिर में धर्मसभा में व्यक्त किए। मुनिश्री विजयेश सागर महाराज एवं क्षुल्लक विश्वोत्तर महाराज मौजूद थे।
   मुनिश्री ने कहा कि अहंकार मनुष्य को परमात्मा से दूर ले जाता है। मनुष्य का शरीर उसे भक्ति के लिए मिलता है लेकिन मन उसकी इंद्रियों को स्थिर नहीं रहने देता व एक क्षण में ही मनुष्य को संसार में कहीं भटका देता है। इसे वश में करने के लिए परमात्मा के नाम का अंकुश जरूरी है। जब मनुष्य परमात्मा प्राप्ति के लिए गुरु के सान्निध्य में जाता है तब गुरु द्वारा दिए प्रवचनों का अंकुश मनुष्य के मन पर लगता है तो मन को शांति मिलती है। मुनिश्री के चरणो में मदिर प्रबंध समिति पदाधिकारियो ने श्रीफल चढ़ाकार आर्शिवाद लिया।

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