भिण्ड। चम्बल क्षेत्र का भिण्ड जिला पूर्व में डकैतो का साम्राज्य जिला कहा जाता था। उस समय क्षेत्र की जनता ने कई यातनाऐं झेली थी। भिण्ड जिला उत्तर में चम्बल, पूर्व की ओर पॉंच नदियों से घिरा हुआ है। साथ ही म.प्र. के उत्तर में स्थित यह जिला विकास की दृष्टि से काफी पिछडा हुआ रहा है। इतिहास की दृष्टि से पाण्डवों का वनवास जब पूरा हुआ तब उन्हें एक वर्ष के लिए अज्ञातवास में रहने का अवसर मिला था। इस अज्ञातवास के दौरान यदि वे कहीं पाये जाते हैं तो उन्हें पूरा वनवास फिर से झेलना पडता था। उस समय पाण्डवो ने भिण्ड जैसे दुर्गम क्षेत्र को चुना और अज्ञातवास करने में सफल रहे। इसी प्रकार राजा नंद के विशाल साम्राज्य के विरूद्ध अभियान के लिए चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा नंद के गुप्तचरों से छिपकर अपनी सेना तैयार कर प्रशिक्षण देने की सुविधा सहित भिण्ड जिले में ही सेना का गठन और रणनीति तैयार की गयी थी।
भिण्ड क्षेत्र में फैली हुई दुर्गम चम्बल नदी के कारण मुगल साम्राज्य में आगरा राजधानी होते हुए भी यह क्षेत्र प्रशासनिक कुशलता और विकास की रोशनी से वंचित रहा। यहां के लोग विगत वर्षो के अंतराल में बहादुर एवं स्वाभिमानी होकर शासन एवं पुलिस के किसी विपरीत आदेश को पालन करने के बजाय बागी होना पसंद करते थे। जिसका उनको सहयोग चंबल नदी के बीहडों में शरण लेने के लिए प्राप्त होता था। इसी प्रकार यहां के लोग घर सम्पत्ति छोड़कर बीहड़ों में कूदने की परम्परा के कारण क्षेत्र विकास की मुहिम से वंचित रहा था। साथ ही इस क्षेत्र के निवासियों का सम्पर्क विकसित क्षेत्रों की अपेक्षा आचरण और व्यवहार में अभी भी सहजता एवं भावनात्मक उत्तेजना परिलक्षित देखने को मिलती है।
ब्रिटिश साम्राज्य के प्रभावी प्रशासक भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड कर्जन ने 2 दिसम्बर, 1899 को ग्वालियर से भिण्ड छोटी रेल लाइन का शुभारम्भ किया था। उस समय देश में ही नहीं विश्व के कई देशों में रेल लाइने नहीं थी। यहां प्रारंभ की गई रेल लाइन ने हलचल तो पैदा की साथ ही वह अंधे मोड़ पर खत्म होकर भिण्ड के विकास का माध्यम नहीं बन सकी। आजादी के बाद जब सब जगह भारत में रेल लाइन बिछाने का काम चल रहा था। तदउपरांत 1985 में गुना-इटावा रेल लाइन परियोजना पर कार्य शुरू किया गया। इस परियोजना में रेल लाइन की दूरी लगभग 350 कि0मी0 को 600 करोड़ रुपये की धनराशि से पूरा किया जाना था। जिसमें भी भिण्ड-इटावा के दुर्गम क्षेत्र से शुरूआत नहीं की गई। जब कि इस परियोजना के अन्तर्गत करीबन 31 साल पहले गुना से शिवपुरी ग्वालियर कराया गया। जिसमें भिण्ड पुरानी छोटी लाइन तक सीमित रखी गई। उसे भिण्ड से इटावा तक 36 कि0.मी. लम्बी बिछाई जाने वाले रेल लाईन में 15 वर्ष से अधिक का समय लगा। इसके बाद केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा भिण्ड-इटावा रेल सेक्शन पूरा करने का निर्णय लिया गया। इस निर्णय से वर्तमान में गुना-इटावा रेल लाइन परियोजना को पूरा कराने के लिए संबल प्रदान किया गया। भिण्ड-इटावा रेल लाईन बिछाने के लिए 11 सितम्बर 2014 को पर्यावरण एवं वन विभाग से रेल्वे को मंजूरी मिली थी। इसके बाद इस रेल लाईन के ट्रेक पर लाईन विछाने का कार्य पूर्ण कराया गया। भिण्ड-इटावा रेल लाईन पर पैसिन्जर गाडी आज से प्रारंभ होने के कारण यह क्षेत्र कई शहरों की दूरी को कम करते हुए सडक के मुख्य मार्गों का यातायात दबाव को निजात मिलेगी। साथ ही भिण्ड एक ओर इटावा से जुड़कर इटावा के उदी जंक्शन के संपर्क से जुडकर आगरा, दिल्ली, अहमदाबाद, जयपुर और अजमेर से जुड जाएगा। इसी प्रकार दूसरी तरफ पूर्व की ओर कानपुर, लखनऊ, बनारस और कलकत्ता से भी जोडा जाकर निर्माणाधीन इटावा-मेनपुरी, एटा, अलीगढ़ एवं बरेली से आवागमन के संपर्क में आकर टुंडला पर रेलगाडि़यों के दबाव को कम करने में सहायक होगा। साथ ही दक्षिण की ओर इटावा-इंदौर रेल लाइन, महू-खंडवा के चौड़ीकरण से सीधा मुम्बई से जुड़ जायेगा। जिसके कारण भिण्ड, ग्वालियर के लोगों को मुम्बई जाने के लिए भोपाल-इटारसी का चक्कर नहीं लगाना पडेंगे।
भिण्ड-इटावा रेल लाइन भिण्ड को एक ऐसी यातायात की धुरी दी है जो भारतीय रेल में आवागमन का केन्द्र बनेगा। साथ ही बड़े संस्थानों को यहां स्थापित करने के लिए सुविधा मिलेगी। इसी प्रकार चम्बल के विशाल बीहड़ों में फल उद्यान के जरिये यह भारत का सबसे अधिक विकसित एवं समृद्ध क्षेत्र बनने की संभावनाओं से भरपूर हो सकता है। यहां शुरू हुई भिण्ड-इटावा रेल लाईन 21वीं सदी का दरवाजा खोलेगी। साथ ही इस क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाएॅं भविष्य में उज्जवल होंगी। जिसके कारण मध्यप्रदेश स्वर्णिम भविष्य की ओर अग्रसर होगा।

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