भिंड। शहर में बद्रीप्रसाद की बगिया में चल रहे 3 दिवसीय जिनेन्द्र महाअर्चना के दूसरे दिन चल रहे प्रवचनों में रविवार को राष्ट्रसंत विहर्ष सागर महाराज ने कहा कि भक्ति हमको फल देगी। आज नहीं तो कल देगी, जीने का संबल देगी आज नहीं हर क्षण देगी। इतिहास में जितने भी भक्त हुए हैं उनकी प्रसिद्धि में कहीं न कहीं भक्ति ही थी। हनुमान ने राम की, मीरा ने श्याम की, चन्दना ने वीर की भक्ति कर इतिहास के पन्ने में नाम दर्ज कराया था।
उन्होंने कहा कि इन्होंने युद्ध लड़के न कोई महल जीता था बल्कि भक्ति कर स्वयं की आत्मा को पावन और विशुद्घ कर जगत पूज्य बन गए और आज भी लोगों के दिलो में विराजमान हैं। यह लौकिक प्रसिद्घि है इसी भव की लेकिन जो भक्ति होती है वह जन्म जन्मान्तर की होती है। इसलिए कहा है कि भक्ति हमको फल देगी, आज नही तो कल देगी।
कार्यक्रम में विघ्न हरण श्री पार्श्वनाथ महाअर्चना में रविवार को 355 अर्घ्य प्रतिष्ठाचार्य अजित शास्त्री, महेन्द्र सिहोनियां द्वारा विधि विधान से पूजन-पाठ कर चढ़ाए गए। राष्ट्रसंत ने कहा कि महाअर्चना में देवताओं का आह्वान मंत्रो द्वारा जाग्रत कर किया जाता है, क्योंकि मंत्रो में बीजा अक्षर होते है। इनके द्वारा उन्हे उत्तेजित करने शक्ति होती है। वहीं देवता हमारी भक्ति का फल प्रसन्न होकर देते हैं क्योंकि प्रभु भक्ति अर्चना किसी की व्यक्तिगत नहीं बल्कि सबका अधिकार है। भक्ति परिचय की मोहताज नहीं होती, इस पर प्रत्येक जीव का अधिकार होता है।
गणाचार्य विराग सागर महाराज के शिष्य आचार्य विशुद्घ सागर महाराज द्घारा रचित ‘नमोस्तु शासन जयवंत हो’ पत्रिका का विमोचन राष्ट्रसंत के ससंघ सानिध्य में अहिंसा ग्रुप के कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया। इस मौके पर नीरज जैन, अतुल जैन, मनीष जैन, प्रभाष जैन, सोनू जैन,रोहित जैन आदि लोग उपस्थित थे।
राष्ट्रसंत के ससंघ को दिल्ली, ग्वालियर, बीना, आगरा एवं भिंड समाज द्वारा चातुर्मास के लिए श्रीफल चढ़ाया गया। जैन समाज के धार्मिक कार्यक्रम से जुड़े प्रवक्ता मनोज जैन ने बताया कि मुनिश्री के चार माह चातुर्मास के लिए अभी से प्रक्रिया शुरू हो गई है। जिसमें भक्तों की भक्ति को देखकर एवं अपने आचार्यो के निर्देशानुसार जुलाई माह के अंत तक चातुर्मास की स्थापना करते है।
प्रवक्ता श्री जैन ने बताया कि शाम की सभा में गुरुभक्ति, आनंद यात्रा एवं राष्ट्रसंत की महाआरती के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। इसमें सौधर्म इन्द्र का दरबार लगाया गया। जिसमें इन्द्रसभा के दौरान प्रश्नों का वाचन कर उनका जवाब सौधर्म इन्द्र द्वारा दिया गया। सभी के साथ दिल्ली से आईं राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित आस्था, म्रंजुला द्वारा भरतनाट्यम नृत्य की प्रस्तुति की गई। इसके साथ भरत-बाहुबली युद्ध नाटक का मंचन किया गया।

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