माँ भद्रकाली को ब्रह्मचारिणी के नाम से भी जाना जाता है। तीनो स्वरूपों की पूजा होने के कारण यह परम वैष्णवी स्थान माना जाता है, कुछ स्थान स्वयंभू स्वरूप एवं ज्योतिर्लिंगों के रूप में आदि काल से लिंग स्वरूप या ज्योतिपुंज के रूप में पूजे जाते है।
शक्ति की पूजा स्वरुप में माँ सरस्वती, माँ लक्ष्मी, या माँ काली के अलग रूपों में भक्त, विद्वान योगी लोगों द्वारा पूजा की जाती है। लेकिन भारत वर्ष में एक या दो स्थान ऐसे है, जहाँ पर शक्ति के तीनों स्वरूप एक ही स्थान पर स्वयंभू रूप यानि लिंग स्वरुप में स्थित है, आदि काल से उनकी पूजा उपासना की परम्परा चली आ रही है। भद्रकाली के मन्दिर में आकर माँ के तीनों स्वरूपों महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती की पूजा की जाती है। यहाँ पर तीर्थ यात्री या भक्त जो भी मनोकामना करते है वह अवश्य ही पूर्ण होती है।
माँ भद्रकाली जो एक रहस्मय गुफा है, गुफा के नीचे से नदी बहती है, गुफा के ऊपर मन्दिर का निर्माण हुआ है। लगभग संम्वत् ९८६ ई (सन् 930) एक महान संत ने इस मन्दिर में शांति पूजा का विधान बनाया जो मन्दिर के शिलापट पर अंकित है। भद्रकाली मन्दिर उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ मण्डल में बागेश्वर जनपद अंतर्गत बागेश्वर मुख्यालय से 30 किमी पूर्व में पहाड़ की सुरभ्य मनमोहित वादियों के बीच में स्थित है। प्रायः माँ जगदम्बा के मन्दिर एवं शक्ति स्थल पहाड़ी शिखरों पर ही अवस्थित पाये जाते है, पर यह मन्दिर अन्य शक्ति स्थलों के विपरीत, चारों ओर शिखरों के बीच घाटी में स्थित है। और इन शिखरों पर नाग देवताओं के मन्दिर विराजमान हैं।
भद्रकाली मन्दिरजय माँ भद्रकाली से एक नदी गुजरती है जिसे भद्रानदी के नाम से पुकारा जाता है। यह नदी मंदिर परिसर से करीब 300 मीटर नीचे से प्रवाहित होती है। जिसके कारण यहां एक प्राकृतिक गुफा का निर्माण हो गया है। इस गुफा में अनेक प्रकार के आकृतियाँ (लिंग) प्रकट हो गए हैं। इसी गुफा में एक कुण्ड है जिसमें पवित्र स्नान किया जाता है। माना जाता है कि इससे दैवीय भौतिक बाधाओं का निवारण होता है। यहां पर माँ के चरण स्थान हैं जिनकी पूजा की जाती है।

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