ग्वालियर। जो भूमिका हवेली की स्थिरता में नींव की होती हैं वही उपयोगिता जीवन में धर्म की होती हैं, जो आपके जीवन में स्थिरता लाती हैं। धर्म हमें जीवन जीने की कला सिखाता हैं। जिसके पास जीवन जीने की कला होती हैं वह जीवन में सब कुछ पा जाता हैं। यह बात राष्ट्रसंत मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज की साधना अनुष्ठान के समापन पर आज गुरुवार को तानसेन नगर स्थित न्यू कालोनी में व्यक्त किए। मुनिश्री विजयेश सागर महाराज भी मौजूद थे!

मुनिश्री ने चार बातों को बताते हुये कहा कि धर्म क्यों? उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोग धर्म इसलिये करते हें कि धर्म करेंगे तो संकट टलेगा, धर्म करेंगे तो पुण्य मिलेगा, धर्म करेंगे तो जीवन रूपांतरित होगा, मुनि श्री ने कहा कि कुछ लोग तो परंपराओं के चलते धर्म कर रहे हैं। संकट धर्मी पर ही आते हैं पापिओं पर नहीं, परीक्षा हमेशा सतिओं की होती हैं वेश्याओं की नहीं।

जितने भी भगवान वने, और बलभद हुये हें उनका जीवन चरित्र पढिये उनके जीवन में बाल्यकाल से लेकर उनके बडे होंने तक अनेक संकट आए, लेकिन वह सभी संकटों से निकल कर करते चले गये। उन्होंने कहा कि इतिहास देख लो परीक्षा धर्मिओं की ही हुई हैं, किसी पापी की नहीं। धर्मी व्यक्ति पर जब संकट आता हैं तो वह उन संकटों से टूटता नही हैं, वह उन संकटों से उपसर्गो को सहता हैं, और उन संकटों से उभर जाता हैं। संकट सभी पर आते हैं लेकिन एक पापी व्यक्ति उन संकटों से टूट जाता हें जबकि धर्म से जुडा व्यक्ति उन संकटों के समय धैर्य को धारण कर उन संकटों से उभर जाता हैं।

मुनिश्री ने रामनवमी पर कहाकि भगवान राम का जीवन गुणों का विशाल संचयन है। उनका सम्पूर्ण जीवन और आदर्श मानवता के नाम एक प्रेरणा है। उन्होने कहा कि उनकी निस्पृहता, वचन प्रतिबद्धता, गुणग्राहक, भवत्सलता, सात्विकता, परोपकार व परायणता जैसे महान गुणों का शतास भी जीवन में अवतरित हो जाए तो हमारा जीवन स्वर्णिम और सुखद बन सकता है। मुनि जी ने कहा कि श्री राम धर्म के जीवंत रूप है। उनके गुणों का स्मरण और आचरण करते हुए व्यक्ति परम तत्व को पा सकता है।
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जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि राष्ट्रसंत मुनि विहर्ष सागर महाराज की 9 दिवसीय साधना आज भगवान अभिषेक ओर शन्तिधार के साथ हवन में आहुतियां देकर समापन हुई। मुनिश्री की साधना अभी खत्म नही हुई है। जबतक कोरोना वॉयरस का कहर है तब तक जाप ओर अनुष्ठान की साधना चलती रहेगी। ये भारत देश साधु संतो की भूमि है। भगवान तक बात पहुँचाने के लिए कोई तो सहारा होना चाहिए। और संतो से बढकर कोई नही है दिगंबर संत जैसी साधना कोई नही कर सकता जो भगवान बनने के लिए भगवान जैसा भेष धारण कर लिया है। आगे भी मन से, तन से, वचन से साधना चलती रहेगी

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